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bhagirathi river भागीरथी नदी

भागीरथी भारत की एक नदी है। यह उत्तराखंड में से बहती है और देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है।

टिहरी बाँध

भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है।

इतिहास

16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह के बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन इसके बाद गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। इसके तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। भारत में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-पद्मा नदी का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है।

कथा

भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की कथा है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है
गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता रोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ

सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ। केशिनी- जिसके असमंजस नामक पुत्र हुआ। सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।

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