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Showing posts from March, 2018

Ancient History of South India दक्षिण भारत का प्राचीन इतिहास

संगम राजवंश  परिचय - भारतीय दक्षिणी राज्यों की सर्वप्रथम विस्तृत जानकारी संगम साहित्य से प्राप्त होती है। - दक्षिण भारत की साहित्यिक भाषाओं एवं बोली जाने वाली भाषाओं में तमिल सबसे प्राचीन भाषा है। - साहित्य सभाओं को संगम कहा जाता था, जो पांडियन राजाओं द्वारा स्थापित की गई थी। - अशोक के रॉक शिलालेख II और XIII से चोल, पांड्या, सत्यपुत्र, केरलपुत्र एवं तम्बापन्नी के दक्षिण  राज्यों का ज्ञान होता है। चोल राजवंश - इन्होने कावेरी नदी के किनारे से सटे हुए क्षेत्र को अधिग्रहित किया। - प्रारंभ में इनकी राजधानी उरीयर थी जो तिरूचिरपल्ली में स्थित थी परन्तु बाद में यह  पूहार(कावेरीपट्टनम) स्थानान्तरित हो गई थी। पूहार मुख्य बंदरगाह था। - पूर्व चोल राजवंश का सबसे विशिष्ट राजा करिकालन था, जिसने तंजौर के निकट वेन्नी के युद्ध में चेरा व   पान्डया की अध्यक्षता वाले लगभग एक दर्जन शासको के एक महासंघ को हराया था। करिकालन ने  एक शक्तिशाली सेना का निर्माण किया एवं श्रीलंका पर विजय प्राप्त़ की। - अंतत: चोल वंश को पल्लवों से युद्ध में पराजय का सामना कर

Ancient India, Eastern Secret प्राचीन भारत , पूर्व गुप्तकाल

शुंग वंश (185 ई.पू. - 75 ई.पू. ) - मौर्य वंश की समाप्ति के पश्चात शुंग वंश अस्तित्व में आया। - ये ब्राहाम्ण वर्ग के लोग थे। - पंतजलि ने पुष्यमित्रशुंग के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाया था। - पुष्यमित्र शुंग के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र सिंहासन पर बैठा। अग्निमित्र कालिदास के विख्यात नाटक का मुख्य पात्र था। - भागवत के शासनकाल में हेलिओडोरस उसके राजदरबार में आया था। यह अतंलिखित का राजदूत था।  हेलिओडोरस एवं भागवत ने मिलकर बेसनगर स्तंभ का निमार्ण करवाया। - देवभूती इस वंश का अंतिम शासक था एवं इनके बाद कण्व राजवंश अस्तित्व में आया। कण्व राजवंश  (75 ई.पू. - 25 ई.पू. ) - ये भारत के पश्चिमी भाग में स्थित थे। - वासुदेव ने शुंग वंश के अंतिम राजा की हत्या कर सत्ता अपने हाथों में ले ली। - कण्व वंश के बाद सातवाहन का शासनकाल प्रारंभ हुआ। कलिंग के चेत - चेत राजवंश के तृतीय सम्राट के काल में कलिंग की शक्ति में वृद्धि हुई। - यह भुवनेश्वर में उदयगिरि की पहाडियों में स्थिति हाथीगुफा शिलालेख से ज्ञात होता है। विदेशी साम्राज्य हिन्द यवन राज्य

Ancient India, Magadha Empire प्राचीन भारत , मगध साम्राज्य

राजनीतिक परिवर्तन - छठी शताब्दी ईसवी के बाद से पुर्वी उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोहे के उपयोग के व्यापक प्रसार ने बड़े क्षेत्रीय राज्यों के गठन की परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी। - अतिरिक्त उत्पादन राजाओं द्वारा अपनी सैनिक व्यवस्था एवं प्रशासन के लिए खर्च किया जाने लगा था। - स्वामित्व वाले लोग सम्बंधित जनपद या क्षेत्र के प्रति निष्ठा रखने लगे थे न कि जन या अपने कबीलों के प्रति। - इस समय 16 प्रदेश थे जिन्हे शोदस महाजनपद कहा गया है, जिनका वर्णन सुत्तपिटक के अंगुत्तर निकाय में किया गया है। - इन 16 महाजनपदों में से चार बहुत शक्तिशाली थे। ये थे- मगध, वत्स, अवन्ति एवं कौशल। - 6 छठी शताब्दी ई.पू. के उत्तरार्ध में मगध, वत्स, अवन्ति एवं कौशल का प्रशासन क्रमश: बिम्बिसार, उदायन, प्राद्योता महासेन एवं प्रसेनजीत द्वारा संभाला जाता था। - वज्जि दक्षिण या बिहार के वैशाली में गंगा नदी के किनारे स्थित आठ गणराज्य कबीलों में महासंघ था। इन आठ कबीलों में लिच्छवी सबसे शक्तिशाली कबीला था, चेतक इसका मुखिया था। हर्यक वंश - मगध साम्राज्य पर शासन करने वाला पहला वंश हर्यक

Ancient India, the development of Jain religion प्राचीन भारत , जैन धर्म का विकास

जैन धर्म का परिचय - जैनियो के अनुसार जैनधर्म की उत्पत्ति अति प्राचीन काल से पहले की है। - जैनी धर्म 24 तीर्थंकर या अपने धर्म के विख्यात शिक्षकों में विश्वास रखते थे। - ऋषभदेव को जैनधर्म का प्रथम तीर्थकर माना जाता है। इन्हे आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता था। - 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ काशी के इक्शवाकू राजा अश्वसेना के पुत्र थे। - ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि का वर्णन ऋग्वेद में भी किया गया है। - वायुपुराण एवं भागवद् पुराण में ऋषभदेव को नारायण का अवतार बताया गया है। - वर्धमान महावीर जैनियों के 24 वें तीर्थंकार थे। वर्धमान महावीर का जीवन - वर्धमान महावीर का जन्म वैशाली के समीप कुण्डग्राम नामक ग्राम में 540 ई.पू. हुआ था। - इनके पिताजी सिद्धार्थ जंत्रिका कुल के मुखिया थे। - इनकी माता त्रिशला वैशाली की एक लिच्छवी कुलीन महिला की बहन थी। बाद में चेतका की पुत्री का विवाह मगध के राजा बिम्बिसार के साथ हुआ। - इनका विवाह यशोदा के साथ हुआ एवं वे एक गृहस्थ जीवन जीने लगे। - इनकी पुत्री का नाम अन्नोजा एवं दामाद का नाम जामेली था। - 30 वर्ष की आयु में ये

ancient India, Jainism and Buddhism प्राचीन भारत , जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का विकास

             उत्‍पि‍त्ति के कारण - वैदिक काल के बाद शुद्रों की स्थिति और खराब होती गई। शुद्रों को सिर्फ तीनों उच्च वर्णों की सेवा के  लिए ही माना जाता था एवं महिलाओं को वैदिक शिक्षा से वंचित रखा जाता था। - शुद्रों को अछुत समझा जाता था। - पुरोहित वर्गों के वर्चस्व के विरूद्ध क्षत्रियों की प्रक्रिया, नए धर्मों की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण था। - वर्धमान महावीर और गौतम बुद्ध दोनो ही क्षत्रिय कुल से संबंधित थे एवं दोनो ही ब्राह्मणों के कुल से  विवादित भाव रखते थे। - वर्णों के इस पदक्रम में तीसरा क्रम वैश्यों का था एवं वे भी किसी ऐसे धर्म की तलाश में थे जो उनकी  स्थिति में सुधार ला सके। - नए सिद्धांतो ने वेदों के भौतिकवादी धर्म के स्थान पर मोक्ष के विचार को जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाने  पर जोर देना आरंभ कर दिया था। इस कारण सभी संप्रदाय धर्म परिवर्तन की तरफ बढने लगे एवं  लगभग 62 नए विधर्मिक समुदाय उभरकर सामने आए। - कुछ महव्वपूर्ण समुदाय थे: बौद्ध, जैन, आजीवक एवं चर्वाक। बौद्ध धर्म  बुद्ध का जीवन - सिद्धार्थ का जन्म एक शाक्य कुल में

Vedic age, North Vedic arya वैदिक युग , उत्तर वैदिक आर्य

भौगोलिक स्थिती 1- उत्तर –वैदिक आर्यो का विस्तार पंजाब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था, जो गंगा- यमुना दो आब  से आच्छादित था। 2- उन्होने पूर्वी क्षेत्र के घने वनों में प्रवेश किया उन्हे साफ करते हुए वर्तमान समय के बिहार राज्य में पहुँच गए।  राजनीति‍ 1- उत्तर- वैदिक आर्यो की राजनीतिक व्यवस्था राजतंत्र में परिवर्तित हो गई थी। इस समय राजा भूमि के  एक क्षेत्र पर शासन करने लगे थे जिसे जनपद कहा जाता था। 2- राजा सेना रखने लगे थे एवं नौकर शाही का विकास भी हो गया था। राजाओं का राजा बनने की  अवधारणा भी विकसित हो गई थी। 3- अधिकांश लेखों में अधिराज राजाधिराज, सम्राट एवं ईरकट आदि अभिव्यक्त्िा उपयोग की गई है। 4- अथर्ववेद में ईरकट को सर्वोपरि संप्रभु माना गया है। 5- विधाता का पद पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था। तथापि सभा एवं समिति इस काल में भी व्यवस्था में रहें। 6- महिलाओं को सभा में उपस्थित होने का अधिकार समाप्त कर दिया गया था एवं इसमें अब ब्राहम्णों  एवं श्रेष्ठों की प्रधान्ता थी। 7- राजा राजसूय यज्ञ किया करते थे जो उन्हे सर्वोच्च शक्ति प्र