गुफा स्थापत्य
परिचय
भारत में सर्वप्रथम मानव
निर्मित गुफाओं
का निर्माण
दूसरी शताब्दी
ई.पू. के आसपास
हुआ था।
अजंता की गुफाएं
अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं।
इनका सर्वप्रथम जिक्र चीनी
तीर्थयात्री ह्वेन
सांग ने भी किया
था। 1819 ई. में इन गुफाओं को एक ब्रिटिश
ऑफिसर ने खोजा था। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी भारतीय
कला के इतिहास में अद्वितीय है। इन चित्रों
में मुख्य
रूप से भगवान बुद्ध
के जीवन
से संबंधित
घटनाओं का चित्रण किया
गया है। ऐलीफेटा की गुफा: यह गुफाएं 6वीं शताब्दी की है। ऐलीफेेंटा का शिव मंदिर विशेष
रूप से प्रसिद्ध है।
भीमबेटका की गुफाएं
भीमबेटका की गुफाएं मध्य
प्रदेश के रायसेन जिले
में स्थित
हैं। इनकी
खोज 1958 में वी. एस. वाकेनकर ने की थी। इन्हें प्रागैतिहासिक कला का सबसे
बड़ा स्थान
माना जाता
है।
कार्ला व भाजा गुफाएं
पूणे से लगभग 60 किमी.
दूर शैलकृत
बौद्ध गुफाएं
स्थित हैं जो पहली
व दूसरे
ई.पू. की हैं।
इन गुफाओं
में कई विहार व चैत्यों का निर्माण किया
गया था।
राजपूतकालीन स्थापत्य कला
1. राजपूत कला व स्थापत्य के संरक्षक
थे। उनका
यह प्रेम
उनके किलों
व महलों
में पूरी
तरह से दिखाई देता
है। चित्तौड़ व ग्वालियर के किले
सबसे पुराने
संरक्षित किलों
में से एक हैं।
ग्वालियर के मन मंदिर
महल का निर्माण राजा
मानसिंह तोमर
(1486-1516) ने कराया
था। जैसलमेर,
बीकानेर, जोधपुर,
उदयपुर और कोटा के महल राजपूतकालीन कला की परिपक्वता को दर्शाते हैं।
इन महलों
का निर्माण
मुख्य रूप से 17वीं व 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में हुआ था। अधिकांश
महलों का निर्माण स्थानीय
पीले-भूरे
रंग के पत्थरों से किया गया था और आज भी ये पूरी
तरह से सुरक्षित हैं।
2. गुलाबी शहर जयपुर का निर्माण 1727 ई. में राजा
जय सिंह
ने करवाया
था। इसमें
राजपूत स्थापत्य कला के चरमोत्कर्ष के दर्शन होते
हैं। राजा
जय सिंह
द्वितीय द्वारा
निर्मित पांच
वेधशालाओं में से दिल्ली
का जंतर
मंतर राजपूत
स्थापत्य की विशिष्ट कृति
है।
जैन स्थापत्य कला
1. प्रारंभिक वर्षो में कई जैन मंदिरों का निर्माण बौद्ध
शैलकृत शैली
के आधार
पर बौद्ध
मंदिरों के आसपास किया
गया। प्रारंभ
में जैन मंदिरों को पूरी तरह से पहाड़ों
से काट कर ही बनाया जाता
था और ईंट का प्रयोग लगभग
न के बराबर होता
था। लेकिन
बाद के काल में जैन शैली
में परिवर्तन आया और पत्थर और ईंटों से मंदिरों का निर्माण शुरु
हो गया।
2. कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान के जैन मंदिर विश्व
विख्यात हैं।
राजस्थान में माउंट आबू और रानकपुर
के मंदिर
विशेष रूप से अपनी
स्थापत्य कला के लिए मशहूर हैं।
देवगढ़ (ललितपुर,
उत्तर प्रदेश),
एलोरा, बादामी
और आईहोल
में भी जैन स्थापत्य और वास्तुकला के कई बेहतरीन उदाहरण
पाये जाते
हैं।
इंडो – इस्लामिक स्थापत्य व वास्तुकला
1. सल्तनत काल में कला के क्षेत्र
में भारतीय
और इस्लामी
शैलियों के सुंदर समन्वय
से इण्डो-इस्लामिक शैली
का विकास
हुआ। इस काल की स्थापत्य कला की मुख्य
विशेषता थी किलों, मकबरों,
गुंबदों तथा संकरी और ऊँची मीनारों
का प्रयोग।
इमारतों की साज-सज्जा
के लिए जीवित वस्तुओं
के चित्र
के स्थान
पर फूल-पत्तियों, ज्यामितीय आकृतियों एवं कुरान की आयतें खुदवाई
जाती थीं।
2. तुर्क शासकों
द्वारा भारत
में बनवाया
गया प्रथम
स्थापत्य कला का नमूना
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
है। इसका
निर्माण गुलाम
वंश के प्रथम शासक
कुतुबद्दीन ऐबक ने दिल्ली
विजय की स्मृति में कराया था। इस काल की सर्वोत्तम इमारत कुतुब
मीनार है।
मुगल स्थापत्य व वास्तुकला
1. मुगलकालीन स्थापत्य व वास्तुकला भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कला प्रेमी
मुगल सम्राटों ने ईरानी
और हिंदू
शैली के समन्वय से मुगल शैली
का निर्माण
किया।
2. अकबर ने हुमायूँ के मकबरे का निर्माण फारसी
शैली के अनुसार करवाया
था। फतेहपुर
सीकरी का निर्माण भी अकबर ने करवाया था। इसमें ईरानी
तथा प्राचीन
भारतीय बौद्ध
वास्तुकला की शैली को अपनाया गया।
यहाँ की सर्वोच्च इमारत
बुलंद दरवाजा
है, जिसकी
ऊँचाई भूमि
से 176 फीट है। जहाँगीर
का काल स्थापत्य कला की दृष्टि
से काफी
सामान्य रहा।
उसके द्वारा
निर्मित सिकंदरा
में स्थित
अकबर का मकबरा काफी
प्रसिद्ध है। एत्मादुद्दौला के मकबरे का यह महत्व
है कि इसमें सबसे
पहले संगमरमर
के ऊपर पच्चीकारी का काम किया
गया था।
3. शाहजहाँ का काल मुगल
स्थापत्य कला का स्वर्ण
युग था। उसके काल की प्रमुख
इमारतें दिल्ली
का लाल किला, रंग महल, दीवाने
बहिश्त, शीशमहल,
अंगूरी बाग,
आगरा की मोती मस्जिद
और विश्वविख्यात ताजमहल हैं।
ताजमहल का निर्माण सफेद
संगमरमर से किया गया और उसकी
दीवारों पर कीमती पत्थरों
की सुंदर
नक्काशी की गई। शाहजहाँ
के बाद मुगल वास्तु
एवं स्थापत्य कला का पतन हो गया।
अंग्रेजी काल
1. यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियाँ भारत
में अपने
साथ यूरोपीय
वास्तु व स्थापत्य कला भी लाईं।
उन्होंने भारत
में कई ऐसी इमारतों
का निर्माण
कराया जिनमें
नव्य शास्त्रीय, रोमांसक्यू, गोथिक
व नवजागरण
शैलियों का स्पष्ट प्रभाव
दिखाई देता
है। भारत
में सबसे
पहले पुर्तगालियों का प्रवेश
हुआ जिन्होंने गोवा में कई चर्र्चों का निर्माण
कराया जिनमें
पुर्तगाली-गोथिक
शैली की झलक दिखाई
देती है।
1530 में गोवा
में निर्मित
सेंट फ्रांसिस चर्च देश में यूरोपीयों द्वारा बनवाया
पहला चर्च
माना जाता
है।
2. भारतीय स्थापत्य कला पर सबसे ज्यादा
प्रभाव ब्रिटेन
का पड़ा।
उन्होंने स्थापत्य कला का उपयोग शक्ति
प्रदर्शन के लिए किया।
भारत के ब्रिटिश शासकों
ने गोथिक,
इम्पीरियल, क्रिश्चियन, इंग्लिश नवजागरण
और विक्टोरियन जैसी कई यूरोपीय शैलियों
की इमारतों
का निर्माण
कराया। अंग्रेजों द्वारा भारत
में अपनाई
गई शैली
को इंडो-सारासेनिक शैली
कहते हैं।
यह शैली
हिंदू, इस्लामिक, और पश्चिमी
तत्वों का खूबसूरत मिश्रण
थी। मुंबई
में अंग्रेजों द्वारा बनवाया
गया विक्टोरिया टर्मिनल इसका
सबसे सुंदर
उदाहरण है।
3. नई दिल्ली
के स्थापत्य व वास्तु
कला को अंग्रेजी राज का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। अंग्रेजों ने इस शहर का निर्माण
अत्यंत ही योजनबद्ध तरीके
से करवाया
था। सर एडवर्ड लुटयंस
इस शहर के प्रमुख
वास्तुकार थे।
स्वतंत्रोत्तर काल
1. स्वतंत्रता मिलने
के बाद भारत में स्थापत्य कला की दो शैलियां उभर कर सामने
आईं- पुनरुत्थानवादी व आधुनिकतावादी। पुनरुत्थानवादियों ने मुख्य रूप से अंग्रेजी शैली को ही अपनाया
जिसकी वजह से वे स्वतंत्र भारत
में अपनी
कोई छाप नहीं छोड़
सके। आधुनिकवादियों ने भी किसी
नई शैली
का विकास
करने की बजाय अंगे्रजी व अमेरिकी
मॉडलों को ही अपनाने
पर जोर दिया। इन दोनों मॉडलों
ने ही भारत में विविधता और जरूरतों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं
दिया।
2. लि कॉर्बुसियर द्वारा डिजाइन
किये गये चंडीगढ शहर को स्वतंत्र भारत में भारतीय स्थापत्य का सबसे
सफल नमूना
माना जा सकता है।
3. हाल के दिनों पश्चिमी
देशों में भी आधुुनिकतावाद का मर्सिया
पढ़ा जा चुका है जिसकी वजह से अब भारतीय स्थापत्यकार भी भारतीय
जड़ों को तलाश कर रहे हैं।
हालांकि इस क्षेत्र में आज भी भ्रम की स्थिति है।
भारतीय स्थापत्य कला की मुख्य शैलियॉ
1. नागर शैली:
नागर शैली
में मंदिरों
का निर्माण
चौकोर या वर्गाकार रूप में किया
जाता था। प्रमुख रूप से उत्तर
भारत में इस शैली
के मंदिर
पाये जाते
हैं। इसी के साथ-साथ एक ओर बंगाल
और उड़ीसा,
दूसरी ओर गुजरात और महाराष्ट्र तक इस शैली
के उदाहरण
मिलते हैं।
2. द्रविड़ शैली:
द्रविड़ शैली
के मंदिर
कृष्णा नदी से लेकर
कन्या कुमारी
तक पाये
जाते हैं।
इसमें गर्भगृह
के ऊपर का भाग सीधा पिरामिडनुमा होता है। उनमें अनेक
मंजिले पाई जाती हैं।
आंगन के मुख्य द्वार
को गोपुरम
कहते हैं।
यह इतना
ऊँचा होता
है कि कई बार यह प्रधान
मंदिर के शिखर तक को छिपा
देता है। द्रविड़ शैली
के मंदिर
कभी-कभी इतने विशाल
होते हैं कि वे एक छोटे
शहर लगने
लगते हैं।
3. बेसर शैली:
नागर और द्रविड़ शैलियों
के मिले-जुले रूप को बेसर
शैली कहते
हैं। इस शैली के मंदिर विंध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा
तक पाये
जाते हैं।
बेसर शैली
को चालुक्य
शैली भी कहते हैं।
चालुक्य तथा होयसल कालीन
मंदिरों की दीवारों, छतों
तथा इसके
स्तंभों द्वारों
आदि का अलंकरण बड़ा
सजीव तथा मोहक है।