द्रव्य व उसकी प्रकृति
वर्गीकरण
हम द्रव्य
को शुद्ध
पदार्थ तथा मिश्रण में वर्गीकृत कर सकते हैं।
द्रव्य का वर्गीकरण तत्व,
यौगिक और मिश्रण में भी किया
जाता है।
1. तत्व (Element)- वह पदार्थ जो न तोड़ा
जा सकता
है और न ही दो या अधिक साधारण
पदार्थों से भौतिक या रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा बनाया
जा सकता
है, तत्व
कहलाता है। उदाहरण- ताँबा
(Cu), चाँदी (Ag), हाइड्रोजन (H) आदि।
2. यौगिक (Compound)- दो या अधिक
तत्वों का निश्चित अनुपात
में संयोजन
यौगिक कहलाता
है। यह किसी विधि
द्वारा दो या अधिक
तत्वों में विभाजित किया
जा सकता
है। इन यौगिकों के गुणधर्म इनके
घटक तत्वों
से बिल्कुल
ही भिन्न
होते हैं।
उदाहरण- जल, शर्करा, लवण,
क्लोरोफॉर्म आदि।
3. मिश्रण (Mixture)- जब हम किसी
भी दो या अधिक
पदार्थ, तत्व
या यौगिक
को अनिश्चित अनुपात में मिलाते हैं तो प्राप्त
होने वाले
पदार्थ को मिश्रण कहा जाता है। मिश्रण में घटकों का गुण धर्म
अपरिवर्तित रहता
है। उदाहरण-
पेट्रोल, वायु,
औषधि इत्यादि। मिश्रण को समांगी (Homogeneous) व असमांगी (Heterogeneous)- दो प्रकारों में विभाजित
किया जाता
है।
आवोग्रादो परिकल्पना व मोल की संकल्पना
- इस परिकल्पना के अनुसार
सभी गैसों
के समान
आयतन में समान ताप व दाब पर समान
संख्या में कण पाए जाते हैं।
प्रयोगों में यह पाया
गया है कि मानक
ताप व दाब अर्थात
273(oDegree)k के ताप और पारे
के 76 सेमी.
दाब पर सभी गैसों
का एक ग्राम आण्विक
द्रव्यमान 22.4 ली. आयतन घेरता
है। इस आयतन को मानक मोलर
आयतन (Standard Molar Volume) कहते हैं।
- आवोग्रादो परिकल्पना के अनुसार
मानक ताप व दाब पर सभी गैसों के
22.4 ली. आयतन
में अणुओं
की संख्या
स्थिर होती
है। इस आयतन में
6.023 × 10(23 power) अणु पाए जाते
हैं। इस संख्या को आवोग्रादो संख्या
कहते हैं।
द्रव्य का गतिज सिद्धान्त
अणुओं में गतिज ऊर्जा
होती है और द्रव
व गैस के अणु संपूर्ण आयतन
में मुक्त
रूप से घूमते रहते
हैं। गैस के अणु निरंतर यादृच्छिक गति में होते हैं और पात्र
की दीवार
पर दबाव
डालते हैं।
तापमान की वृद्धि करने
से गैसों
के अणुओं
की गतिज
ऊर्जा में भी वृद्धि
हो जाती
है।
रासायनिक अभिक्रियाऍ तथा रासायनिक
समीकरण
रासायनिक समीकरण
को रासायनिक क्रिया या रासायनिक अभिक्रिया भी कहते
हैं। वह प्रक्रम जिसमें
दो या अधिक पदार्थों (तत्व तथा यौगिक) की पारस्परिक अभिक्रिया से जब कोई एक या अधिक
नए पदार्थ
बनते हैं,
रासायनिक अभिक्रिया कहलाता है। रासायनिक अभिक्रियाएँ मुख्यत: चार प्रकार की होती हैं-
संयोजन, अपघटन,
विस्थापन तथा उभय अपघटन।
किसी भी रासायनिक अभिक्रिया को प्रदर्शित करने का सबसे सरल तरीका उसे रासायनिक समीकरणों में लिखना
है।
परमाणु संरचना
परिचय
सन् 1808 में ब्रिटेन के भौतिकशास्त्री जॉन डाल्टन ने बताया कि पदार्थ अत्यन्त
छोटे-छोटे
अविभाज्य कणों
से मिलकर
बना होता
है, जिन्हें
परमाणु कहते
हैं। इसका
स्वतंत्र अस्तित्व संभव है। बाद में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जे. जे. थॉमसन व रदरफोर्ड ने बताया कि परमाणु अविभाज्य नहीं है, बल्कि यह छोटे-छोटे
आवेशित कणों
से मिलकर
बना होता
है। आधुनिक
अवधारणा के अनुसार परमाणु
धनावेशित प्रोटानों, ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों व उदासीन
न्यूट्रॉनों से मिलकर बना होता है। परमाणु के केंद्र में एक नाभिक
होता है, जिसमें प्रोटॉन
व न्यूट्रॉन उपस्थित रहते
हैं। इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते
हैं। परमाणु
का समस्त
द्रव्यमान इसके
नाभिक में केंद्रित रहता
है।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
सन् 1911 में अंग्रेज भौतिकशास्त्री रदरफोर्ड ने धातु
पन्नों पर ड्ड-कणों
की बमबारी
करके परमाणु
संरचना के संदर्भ में महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त किए-
- परमाणु का अधिकांश भाग खोखला है।
- परमाणु के केंद्र में अति सूक्ष्म
स्थान में एक धनावेशित भाग है।
- धनावेश अत्यन्त
सघन व दृढ़ भाग में संकेंद्रित है जिसे
नाभिक कहते
हैं। नाभिक
के चारों
ओर इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं
में चक्कर
लगाते हैं।
परमाणु का बाह्य मॉडल
1913 में डेनिस
भौतिकशास्त्री नील बोह्र ने रदरफोर्ड मॉडल
में कमियों
को दूर करने का प्रयास किया,
जिनकी प्रमुख
विशेषताएँ निम्न
हैं-
- इलेक्ट्रॉन केवल
कुछ ऐसी सुनिश्चित कक्षाओं
में घूमते
हैं जिनमें
उनकी ऊर्जा
का उत्सर्जन नहीं होता।
इन्हें स्थायी
कक्षायें कहते
हैं।
- जब इलेक्ट्रॉन किसी उच्च
ऊर्जा वाली
कक्षा से निम्न ऊर्जा
वाली कक्षा
में लौटता
है तो वैद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करता
है।
परमाणु क्रमांक
किसी तत्व
के परमाणु
के नाभिक
में उपस्थित
प्रोटॉनों की संख्या को उस तत्व
का परमाणु
क्रमांक कहते
हैं।
परमाणु क्रमांक
= प्रोटॉनों की संख्या = इलेक्ट्रॉनों की संख्या
द्रव्यमान संख्या
किसी तत्व
के परमाणु
के नाभिक
में उपस्थित
प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों की संख्याओं का योग, द्रव्यमान संख्या कहलाता
है।
द्रव्यमान संख्या
= प्रोटॉनों की संख्या+न्यूट्रॉनों की संख्या
परमाणु भार
किसी तत्व
का परमाणु
भार वह संख्या है, जो प्रदर्शित करती है कि तत्व
का एक परमाणु कार्बन
परमाणु के
1/12 भाग से कितना गुना
भारी है।
अणु
पदार्थ अणुओं
से मिलकर
बने होते
है और अणु परमाणुओं से। अणु किसी पदार्थ
के वे सूक्ष्मतम कण होते हैं जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकते
हैं और उसमें पदार्थ
के समस्त
गुण उपस्थित
रहते हैं।
अणुभार
किसी पदार्थ
का अणुभार
वह संख्या
है जो यह प्रदर्शित करता है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन-12 समस्थानिक (isotope) के एक परमाणु
के भार के 1/12 भाग से कितना
गुना भारी
है।
ग्राम अणु भार
जब किसी
पदार्थ के अणुओं का भार ग्राम
में प्रदर्शित किया जाता
है तो उसे ग्राम
अणु भार कहते हैं।
प्रत्येक पदार्थ
के 1 ग्राम
अणु में उस पदार्थ
के 6.023&1023 अणु होते हैं।
समभारिक
भिन्न-भिन्न
तत्वों के परमाणु जिनके
परमाणु क्रमांक
भिन्न-भिन्न
परंतु द्रव्यमान संख्या समान
होते हैं,
समभारिक कहलाते
हैं। कार्बन
तथा नाइट्रोजन की द्रव्यमान संख्या 14 है, अत: ये समभारिक हैं।
समावयवता
कुछ यौगिक
ऐसे होते
हैं जिनके
अणु सूत्र
तो समान
होते हैं,
परंतु संरचनात्मक सूत्रों में भिन्नता के कारण ऐसे यौगिकों के गुण भी भिन्न-भिन्न
होते हैं।
उदाहरण- एथिल
अल्कोहल व डाइमेथिल ईथर एक दूसरे
के समावयवी
हैं।
अपरुपता
जब एक ही तत्व
भिन्न-भिन्न
रूपों में पाया जाता
है तो ये रूप उस तत्व
के अपररूप
कहलाते हैं।
हीरा व कार्बन के दो अपररूप
हैं। अपररूपों के भौतिक
व रासायनिक गुण एक दूसरे से भिन्न होते
हैं।
हाइड्रोजनीकरण
यह हाइड्रोजन उपयोग करने
की बहुत
ही महत्वपूर्ण औद्योगिक विधि
है। जब गर्म तत्व
वनस्पति तेल में निकिल
(उत्प्रेरक) की उपस्थिति में तीव्र हाइड्रोजन प्रवाहित किया
जाता है तो वनस्पति
तेल ठोस वसा में परिवर्तित हो जाता है जिसे वनस्पति
घी कहा जाता है। इस प्रक्रिया को ही हाइड्रोजनीकरण कहते
हैं।
उत्प्रेरक
1835 में बर्जीलियस ने देखा
कि कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो रासायनिक क्रियाओं के वेग को प्रभावित करते
हैं। परंतु
रासायनिक क्रिया
के फलस्वरूप ऐसे पदार्र्थों की संरचना
या गुणधर्म
अप्रभावित रहते
हैं। ऐसे पदार्र्थों को उत्प्रेरक कहते
हैं और इस प्रक्रिया को उत्प्रेरण कहते हैं।