Skip to main content

physics : electricity , भौतिक विज्ञान : विद्धुत


विद्धुत

चालक तथा अचालक पदार्थ

जिन पदार्थों से होकर विद्युत आवेश सरलता से प्रवाहित होता है, उन्हें चालक कहते हैं तथा वे पदार्थ जिनसे होकर आवेश का प्रवाह नहीं होता है, अचालक कहलाते हैं। लगभग सभी धातुएं, अम्ल क्षार, लवणों के जलीय विलयन, मानव शरीर आदि विद्युत चालक पदार्थों के उदाहरण हैं तथा लकड़ी, रबड़, कागज, अभ्रक, आदि अचालक पदार्थों के उदाहरण हैं।

विद्युत धारा

आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। ठोस चालकों में आवेश का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है। जबकि द्रवों जैसे- अम्लों, क्षारों लवणों के जलीय विलयनों तथा गैसों में यह प्रवाह आयनों की गति के कारण होता है। यदि किसी परिपथ में धारा एक ही दिशा में बहती है तो उसे दिष्टï धारा (Direct current) कहते हैं तथा यदि धारा की दिशा लगातार बदलती रहती है तो उसे 'प्रत्यावर्ती धारा' (alternating current) कहते हैं।

विभवान्‍तर

एकांक आवेश द्वारा चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रवाहित होने में किए गए कार्य को ही दोनों सिरों के मध्य विभवांतर कहते हैं।

v = w/q (जहाँ v= विभवांतर, w= कार्य q = प्रवाहित आवेश है।

विभवांतर का मात्रक वोल्ट है।

विद्युत सेल

विद्युत सेल में विभिन्न रासायनिक क्रियाओं से रासायनिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। विद्युत सेल में धातु की दो छड़ें होती हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड (श्वद्यद्गष्ह्लह्म्शस्रद्ग) कहते हैं।

विद्युत सेल मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं

1. प्राथमिक सेल- इसमें रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। वोल्टीय सेल, लेक्लांशे सेल, डेनियल सेल, बुनसेन सेल आदि इसके उदाहरण हैं।

2. द्वितीयक सेल- इसमें पहले विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा, फिर रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इसका इस्तेमाल मोटरकारों, ट्रकों इत्यादि को स्टार्ट करने में किया जाता है।
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता

वैद्युत क्षेत्र में परीक्षण आवेश पर लगने वाले बल तथा स्वयं परीक्षण आवेश के अनुपात को किसी बिंदु पर क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं। यदि परीक्षण आवेश का मान ह्नश इस पर लगने वाला बल स्न हो तो वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता-

E=F / Q0

खोखले चालक के भीतर वैद्धुत क्षेत्र

किसी खोखले आवेशित चालक के भीतर वैद्युत क्षेत्र शून्य होता है तथा इसको दिया गया सम्पूर्ण आवेश, इसके बाहरी पृष्ठï पर ही संचित रहता है।

1. संधारित्र (capacitor)

संधारित्र में समान आकार की दो प्लेटें होती हैं, जिन पर बराबर विपरीत आवेश संचित रहता है। इसका प्रयोग आवेश के संचय में किया जाता है।

2. वैद्युत अपघटन (Electrolysis)

कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं कि जब उनमें वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वे अपघटित हो जाते हैं। इन्हें वैद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं। उदाहरण- अम्लीय जल, नमक का जल इत्यादि।

फैराडे के वैद्धुत अपघटन सम्‍बंधी नियम

- प्रथम नियम- वैद्युत अपघटन की क्रिया में किसी इलेक्ट्रोड पर मुक्त हुए पदार्थ की मात्रा, सम्पूर्ण प्रवाहित आवेश के अनुक्रमानुपाती होती है। यदि i एम्पियर की धारा t समय तक प्रवाहित करने पर मुक्त हुए पदार्थ का द्रव्यमान m हो तो,

m= Zit (जर्हाँ Z एक नियतांक है, जिसे मुक्त हुए तत्व का वैद्युत रासायनिक तुल्यांक कहते हैं।

- दूसरा नियम- यदि विभिन्न वैद्युत अपघट्यों में समान धारा, समान समय तक प्रवाहित की जाए तो मुक्त हुए तत्वों के द्रव्यमान उनके रासायनिक तुल्यांकों के अनुक्रमानुपाती होते हैं। यदि मुक्त हुए तत्वों के द्रव्यमान m1 m2 तथा उनके रासायनिक तुल्यांक W1 W2 हों तो,

फैराडे संख्या

फैराडे संख्या आवेश की वह मात्रा है जो किसी तत्व के एक किग्रा. तुल्यांक को वैद्युत अपघटन द्वारा मुक्त करती है। इसका मान 9.65&107 कूलाम प्रति किग्रा. तुल्यांक होता है।

प्रतिरोध

जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक में गतिशील इलेक्ट्रॉन अपने मार्ग में आने वाले परमाणुओं से निरंतर टकराते हैं। इस व्यवधान को ही चालक का प्रतिरोध करते हैं। इसका मात्रक 'ओम' होता है।

ओम का नियम

यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (ताप इत्यादि) में कोई परिवर्तन हो तो चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।

v =IR (जहाँ v = वोल्ट, i = प्रवाहित धारा R = चालक का प्रतिरोध)

प्रतिरोध का संयोजन

सामान्यतया प्रतिरोध को परिपथ में दो प्रकार से संयोजित किया जा सकता है-

श्रेणी क्रम (Series Combination) - इस क्रम में जोड़े गए प्रतिरोधों में सामान धारा प्रवाहित होती है तथा भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों के बीच भिन्न-भिन्न विभवांतर होता है।  बिंदुओं A B के बीच तुल्य प्रतिरोध (Resultant resistance) की गणना निम्न सूत्र से की जाती है।

R = r1 + R2 + R3 + - -

समान्तर क्रम (Parallel resistence)- इस प्रकार के संयोजन में सभी प्रतिरोधों के बीच विभवांतर तो समान रहता है, लेकिन धारा की मात्रा भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों में भिन्न-भिन्न रहती है।


Popular posts from this blog

Purpose of computer , कंप्यूटर का उद्देश्य

              कंप्यूटर का उद्देश्य   Purpose of computer आज के युग में कंप्यूटर का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ गया है । जीवन के हर क्षेत्र में आज किसी न किसी रूप में कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है ।   इसी आधार पर कंप्यूटर के उद्देश्य निम्नलिखित है - 1. कंप्यूटर की सहायता से विभिन्न प्रकार के अकाउंट केश बुक , लेजर ,   बैलेंस शीट , सेल्स रजिस्टर , परचेज बुक तथा बैंक विवरण सहजता व शुद्धता एवं गति के साथ तैयार की जा सकती है । 2. विश्व व्यापार , आयात निर्यात की स्थित ,, भुगतान संतुलन आदि के क्षेत्र में भी कंप्यूटर बड़े उपयोगी साबित हो रहे है। 3. चिकित्सा विज्ञान में कंप्यूटर का प्रयोग औषधि निर्माण से लेकर उपचार तक की संपूर्ण प्रक्रिया में हो रहा है। 4.   इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कंप्यूटर की मदद से विभिन्न प्रकार की सरल तथा जटिल मशीनों , छोटे बड़े यंत्रों तथा उपकरणों की उपयोगी मितव्यई तथा सरल डिजाइन सरलता से उपलब्ध हो जाती है , । 5. कंप्यूटर का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य ,   समाचारों का एक लंबी द...

Western painting पश्चिमी चित्रकला

पश्चिमी चित्रकला परिचय 27000-13000 ई . पू . में दक्षिण - पश्चिम यूरोप में गुफा कला के द्वारा तत्कालीन मानव ने अपने जीवन का चित्रण किया। अफ्रीकी कला , इस्लामिक कला , भारतीय कला , चीनी कला और जापानी कला - इन सभी का पूरा प्रभाव पश्चिमी चित्रकला पर पड़ा है। प्राचीन रोमन व ग्रीक चित्रकला प्राचीन ग्रीक संस्कृति विजुअल कला के क्षेत्र में अपने आसाधारण योगदान के लिए विख्यात है। प्राचीन ग्रीक चित्रकारी मुख्यतया अलंकृत पात्रों के रूप में मिली है। प्लिनी द एल्डर के अनुसार इन पात्रों की चित्रकारी इतनी यथार्थ थी कि पक्षी उन पर चित्रित अंगूरों को सही समझ कर खाने की कोशिश करते थे। रोमन चित्रकारी काफी हद तक ग्रीक चित्रकारी से प्रभावित थी। लेकिन रोमन चित्रकारी की कोई अपनी विशेषता नहीं है। रोमन भित्ति चित्र आज भी दक्षिणी इटली में देखे जा सकते हैं। मध्‍यकालीन शैली बाइजेंटाइन काल (330-1453 ई .) के दौरान बाइजेंटाइन कला ने रुढि़वादी ईसाई मूल्यों को व्यवहारिक या...

vyas river ब्यास नदी

ब्यास नदी लम्बाई -470 जलसम्भर क्षेत्र -20.303 ब्यास पंजाब (भारत) हिमाचल में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। नदी की लम्बाई 470 किलोमीटर है। पंजाब (भारत) की पांच प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार है। बृहद्देवता में शतुद्री या सतलुज और विपाशा का एक साथ उल्लेख है। इतिहास- ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है। हिमाचल में इसकी लंबाई 260 कि॰मी॰ है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। इस नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर रखा गया है। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है। स्थिति इस नदी का उद्गम मध्य ह...