1. भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की स्थापना (1885 ई.)
- एलन ऑक्टोवियन ह्युम नामक
एक अवकाश
प्राप्त ब्रिटिश
अधिकारी ने भारतीय नेताओं
के सहयोग
से 28 दिसंबर,
1885 को मुंबई
मेँ भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
की।
- मुंबई मेँ आयोजित कांग्रेस के प्रथम
अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश
चंद्र बनर्जी
ने की। इस अधिवेशन
मेँ मात्र
72 प्रतिनिधियोँ ने भाग लिया।
- प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार
ने कांग्रेस को अपना
सुरक्षा कवच समझकर सहयोग
दिया, किन्तु
बाद जब कांग्रेस ने जब वैधानिक
सुधारों की मांग रखी तो अंग्रेजों का कांग्रेस से मोह भंग हो गया।
- 1885 मेँ भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
के साथ ही एक अखिल भारतीय
राजनीतिक मंच का जन्म
का हुआ।
- इसी के साथ विदेशी
शासन से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष एक संगठित के रुप से प्रारंभ हुआ।
- कांग्रेस के जन्म के साथ ही भारतीय इतिहास
मेँ एक नया युग आरंभ हुआ।
छोटे-छोटे
विद्रोही दलों
तथा स्थानीय
दलों आदि सभी ने अपने को कांग्रेस मेँ विलीन कर लिया।
- कांग्रेस ने आरंभ से ही एक पार्टी नहीँ
वरन् एक आंदोलन का काम किया।
यह आंदोलन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से जाना जाता
है।
2. कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
कांग्रेस अधिवेशन
- महत्वपूर्ण तथ्य
1. 1887 मद्रास - सर्वप्रथम देशी भाषाओँ
में भाषण
2. 1888 इलाहबाद - प्रथम
बार कांग्रेस संविधान का निर्माण, अध्यक्ष
जॉर्ज यूल,
प्रथम ईसाई
अध्यक्ष,
3. 1889 मुंबई - मताधिकार की आयु
21 वर्ष, सार्वभौम मताधिकार की मांग
4. 1891 नागपुर - कांग्रेस ने अपना
संविधान पारित
किया
5. 1893 लाहौर - भारत
में सिविल
सेवा परीक्षा
के आयोजन
की मांग
6. 1896 कलकत्ता - प्रथम
बार वन्दे
मातरम का गायन
7. 1905 बनारस - स्वराज्य प्राप्ति का संकल्प पारित,
अनिवार्य शिक्षा
पर बल
8. 1907 सूरत - कांग्रेस का प्रथम
विभाजन
9. 1909 लाहौर - कांग्रेस का रजत जयंती अधिवेशन
10. 1911 कलकत्ता - राष्ट्रगान का प्रथम
बार गायन
11. 1916 लखनऊ - प्रथम
विभाजन समाप्त,
कांग्रेस लीग समझौता
12. 1918 दिल्ली - कांग्रेस का दूसरा
विभाजन, उदारवादी कांग्रेस से अलग हो गए
13. 1920 नागपुर - तिलक
द्वारा स्वराज
पार्टी का गठन, भाषाई
अधार पर प्रान्तों के गठन की मांग
14. 1920 कलकत्ता (विशेष
अधिवेशन) - असहयोग
कार्यक्रम को स्वीकृति
15. 1921 अहमदाबाद - प्रथम
बार राष्ट्रीय ध्वज का आरोहण, अध्यक्ष
चितरंजन दास,
लिएकिन जेल में होने
के कारण
अध्यक्षता हाकिम
अजमल खां ने की
16. 1924 बेलगाम (कर्नाटक)
- अध्यक्षता महात्मा
गाँधी ने की
17. 1925 कानपुर - अध्यक्ष
हसरत मोहानी,
पूर्ण स्वधीनता का प्रस्ताव रखा गया
18. 1926 गुवाहाटी - कांग्रेसियों के लिए खद्दर पहनना
अनिवार्य
19. 1927 मद्रास - साइमन
आयोग के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गया
20. 1929 लाहौर - अध्यक्ष
जवाहरलाल नेहरु,
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया
3. आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय के कारण
1. भारत एवं उपनिवेशी शासन
के हितों
में विरोधाभास
2. भारत का प्रशासनिक, राजनितिक एवं आर्थिक
एकीकरण
3. पाश्चात्य चिंतन
तथा शिक्षा
का प्रभाव
4. प्रेस एवं समाचार-पत्र
की भूमिका
5. भारत के अतीत का पुनःअध्ययन
6. मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का अम्युदय
7. तत्कालीन विश्वव्यापी घटनाओं का प्रभाव
8. अंग्रेज शासकों
की प्रक्रियावादी नीतियां
एवं जातीय
अहंकार
4. कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें
1. 1836 - बंगभाषा प्रकाशक
सभा
2. 1838 - जमींदारी एसोसिएशन
3. 1843 - बंगाल ब्रिटिश
इंडिया सोसायटी
4. 1851 - ब्रिटिश इंडिया
एसोसिएशन
5. 1866 - ईस्ट इंडिया
एसोसिएशन
6. 1867 - पूना सार्वजनिक सभा
7. 1875 - इण्डियन लीग
8. 1876 - कलकत्ता भारतीय
एसोसिएशन
9. 1884 - मद्रास महाजन
सभा
10. 1885 - बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन
5. प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों ) के उदृेश्य
- संवैधानिक दायरे
में रहकर
प्रदर्शन एवं सभाएं करना
- भारत के पक्ष में जनमत का निर्माण करना
- इंग्लैण्ड में भारतीय पक्ष
के प्रति
समर्थन बढ़ाना
- भारतीयों को राजनीतिक शिक्षा
देना
- ब्रिटेन से भारत के राजनीतिक सम्बंधों को बनाये
रखना क्योंकि
वह समय ब्रिटिश सरकार
को प्रत्यक्ष चुनौती देने
हेतु उपयुक्त
न था
6. नरमपंंथी राष्ट्रवादियाेंं का योगदान
- उपनिवेशी शासन
की आर्थिक
शोषण की नीति की निंदा करना
- व्यस्थापिका सम्बन्धी संवैधानिक सुधार
- सामान्य प्रशासनिक सुधारों हेतु
अभियान चलाना
- भारतीयों के दीवानी अधिकारों की रक्षा
करना
7. बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. सेे 1916 ई. )
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही संपूर्ण भारत
के लोग ब्रिटिश शासन
के विरुद्ध
एक राष्ट्रीय मुख्यधारा मेँ शामिल होते
जा रहै थे। बंगाल
तब भारतीय
राष्ट्रवाद का प्रधान केंद्र
था।
- तत्कालिक बंगाल
मेँ आधुनिक
बिहार, उड़ीसा,
पश्चिम बंगाल
तथा बांग्लादेश आते थे। लार्ड कर्जन
ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर
बंगाल को दो भागोँ
मेँ बांट
दिया।
- बंगाल विभाजन
की सर्वप्रथम घोषणा 3 दिसंबर
1903 को की गई। यह
16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ।
राष्ट्रीय नेताओं
ने विभाजन
को भारतीय
राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा।
- बंगाल के नेताओं ने इसे क्षेत्रीय और धार्मिक
आधार पर बांटने का प्रयास माना।
अतः इस विभाजन का व्यापक विरोध
हुआ तथा
16 अक्टूबर को पूरे देश मेँ शोक दिवस के रुप मेँ मनाया गया।
- हिंदू मुसलमानोँ ने अपनी
एकता प्रदर्शित करते हुए एक बहुत
ही तीव्र
आंदोलन 7 अगस्त
1905 से चलाया।
- स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन
की उत्पत्ति बंगाल विभाग
विभाजन विरोधी
आंदोलन के रुप मेँ हुई।
- इसके अंतर्गत
अनेक स्थानोँ
पर विदेशी
कपड़ोँ की होली जलाई
गई और विदेशी कपड़े
बेचने वाली
दुकानोँ पर धरने दिए गए।
- इस प्रकार
बंगाल के नेताओं ने बंगाल विभाजन
विरोधी आंदोलन
को स्वदेशी
और बहिष्कार आंदोलन के रुप मेँ परिवर्तित कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता प्रदान
की।
8. उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 ई. सेे 1914 ई. )
- बंग बंग विरोधी आंदोलन
का नेतृत्व
तिलक बिपिन
चंद्र पाल और अरविंद
घोष जैसे
नेताओं के हाथों मेँ आना ही राष्ट्रवादियोँ के उत्कर्ष का प्रतीक था। सरकारी दमन और जनता
को कुशल
नेतृत्व देने
मेँ नेताओं
की असफलता
के कारण
उपजी कुंठा
ने क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया।
- क्रांतिकारी युवकों
अनेक गुप्त
संगठन, जैसे-अनुशीलन समिति,
अभिनव भारत,
मित्र मेला,
आर्य बांधव
समाज आदि बनाये।
- बंगाल, मद्रास,
महाराष्ट्र मेँ ही नहीँ
वरन कनाडा,
अमेरिका, जर्मनी,
सिंगापुर आदि देशोँ मेँ भी अनेक
क्रांतिकारी दल स्थापित हो गए।
- गदर पार्टी
भी एक ऐसा ही दल था जिसकी स्थापना
सान फ्रांसिस्को मेँ लाला
हरदयाल सिंह
और भाई परमानंद आज क्रांतिकारियों ने
1913 मेँ की थी।
- यद्यपि गदर पार्टी का यह अभियान
असफल रहा,
फिर भी उसने अमेरिका
मेँ भारतीय
स्वाधीनता के लिए प्रचार
कार्य जारी
रखा।
9. होमरूल लीग आंदोलन (1915 ई. सेे 1916 ई. )
- प्रथम विश्व
युद्ध के आरंभ होने
पर भारतीय
राष्ट्रवादी नेताओं
ने सरकार
के युद्ध
प्रयास मेँ सहयोग का निश्चय किया।
- इसके लिए एक वास्तविक राजनीतिक जन आंदोलन की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा कोई जन-आंदोलन भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व
मेँ संभव
नहीँ था, क्योंकि यह नरमपंथियोँ के नेतृत्व मेँ एक निष्क्रिय और जड़ संगठन बन चुकी थी। इसलिए 1915-1916 मेँ दो होमरूल
लीगों की स्थापना हुई।
- भारतीय होम रुल लीग का गठन आयरलैंड के होमरुल लीग के नमूने
पर किया
गया, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी
से उभरती
हुई प्रतिक्रियात्मक राजनीति
के नए स्वरुप का प्रतिनिधित्व करता
था। एनी बेसेंट और बाल गंगाधर
तिलक इस नए स्वरुप
के नेतृत्वकर्ता थे।
- होमरुल आंदोलन
के दौरान
तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा होमरुल
या स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैँ इसे लेकर
रहूँगा दिया
था।
- 1917 का वर्ष
होमरुल के इतिहास मेँ एक मोड़ बिंदु था। जून मेँ एनी बेसेंट
तथा उसके
सहयोगियोँ को गिरफ्तार कर लेने के पश्चात आंदोलन
अपने चरम पर था।
- सितंबर 1917 मेँ भारत सचिव
मांटेग्यू की घोषणा, जिस मेँ होमरुल
का समर्थन
किया गया था, ने इस आंदोलन
मेँ एक और निर्णायक मोड़ ला दिया।
- लीग ने अपने उद्देश्योँ की सफलता
के लिए एक कोष बनाया तथा धन एकत्रित
किया, सामाजिक
कार्यो का आयोजन किया
तथा स्थानीय
प्रशासन के कार्योँ मेँ भागीदारी भी निभाई।
10. प्रमुख षडयंत्र काण्ड
वर्ष - षड्यंत्र - सम्बंधित घटनाक्रम
1. 1909-1910 - नासिक काण्ड
- वी.डी. सावरकर को आजीवन कारावास
2. - <-> - अलीपुर काण्ड
- अरविन्द घोष पर मुकदमा
3. 1908 - ढाका काण्ड
- पुलिन दास को 7 साल की सजा
4. 1915 - दिल्ली काण्ड
- लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने का मामला
5. 1916 - रेशमी पत्र
काण्ड - <-> -
6. 1925 - काकोरी काण्ड
- लखनऊ के पास रेल लूट
7. 1930 - लाहौर काण्ड
- भगतसिंह, सुखदेव,
राजगुरु को फांसी
8. 1922-1924 - पेशावर काण्ड
- भारत में साम्यवादियों को पकड़ना
9. 1924 - कानपुर काण्ड
- साम्यवादियों की गिरफ़्तारी
10. 1929-1933 - मेरठ काण्ड
- श्रमिकों एवं साम्यवादियों पर मुकदमा
11. लखनउ समझौता (1916)
- वर्ष 1914 में तिलक, जो मांडले जेल से लौटने
के बाद समझौतावादी हो गए थे, तथा एनी बेसेंट ने मिलकर कांग्रेस के दोनो
गुटों को नजदीक लाने
का प्रयास
किया। देश मेँ बढ़ रही राष्ट्रवादी भावना और राष्ट्रीय एकता
की आकांक्षा के कारण
1916 मेँ कांग्रेस के लखनऊ
अधिवेशन मेँ ऐतिहासिक महत्व
की दो घटनाएँ हुई।
- पहली यह कि कांग्रेस के दोनो
धड़े फिर से एक हो गए। इस अधिवेशन
की दूसरी
महत्वपूर्ण उपलब्धि
यह थी कि अपने
पुराने मतभेद
भुलाकर कांग्रेस और मुस्लिम
लीग ने सरकार के समक्ष एकता
प्रदर्शित करते
हुए साझी
राजनीतिक मांगे
रखी।
12. रोलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1917 ईस्वी से 1919 ईस्वी )
- प्रथम विश्व
युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय
जनता संवैधानिक सुधारोँ की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश
सरकार ने दमनकारी रौलेट
एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया।
- रौलेट एक्ट
के द्वारा
सरकार को यह अधिकार
प्राप्त हुआ कि, वह किसी भी भारतीय पर अदालत मेँ बिना मुकदमा
चलाए और दंड दिए बिना ही जेल मेँ बंद कर सके।
- 1919 मेँ रौलेट
एक्ट के विरोध मेँ गांधी जी ने पहली
बार एक अखिल भारतीय
सत्याग्रह आंदोलन
का आरंभ
किया।
- सरकार इस जन आंदोलन
को कुचल
देने पर उतारु थी उसने निहत्थे
प्रदर्शनकारियों को ऐसे कुचलने
का प्रयास
किया, जिसने
दमन के इतिहास मेँ नये अध्याय
जोड़े हैं।
दमनात्मक नीतियों
तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू
और डॉ. सत्यपाल जैसे
लोकप्रिय नेताओं
की गिरफ़्तारी के विरोध
में अमृतसर
के जलियाँवाला बाग़ मेँ एक सभा का आयोजन
किया गया।
- जनरल डायर
ने सभा के आयोजन
को सरकारी
आदेशोँ की अवहेलना माना
तथा सभा स्थल को सशक्त सैनिको
के साथ घेर लिया
और बिना
किसी पूर्व
चेतावनी के शांतिपूर्ण ढंग से चल रही सभा पर गोलियाँ
चलाने का आदेश दे दिया।
- इस घटना
मेँ एक हजार से अधिक लोग मारे गए जिसमेँ युवा,
महिलाएँ, बूढ़े,
बच्चे सभी शामिल थे। यह घटना
आधुनिक भारतीय
इतिहास मेँ जलियावाला कांड
हत्या कांड
के नाम से प्रसिद्द है।
- इस घटना
के विरोध
मेँ रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार
द्वारा प्रदान
की गई नाइटहुड की उपाधि वापस
कर दी तथा सर शंकरन नायर
ने गवर्नर
जनरल की कार्यकारिणी परिषद
से त्याग
पत्र दे दिया।
13. खिलाफत आंदोलन (1919 ईस्वी )
- प्रथम विश्व
युद्ध की समाप्ति पर भारतीय मुसलमान
तुर्की के प्रति होने
वाले व्यवहार
से क्षुब्ध
थे। युद्ध
के दौरान
ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज
ने दो आश्वासन दिए थे – 1. युद्धोपरांत तुर्की
को आत्मनिर्णय का अधिकार
होगा, 2. वहां
के खलीफा
की स्थिति
के बारे
मेँ ब्रिटेन
कोई हस्तक्षेप नहीँ करेगा।
युद्ध के पश्चात ब्रिटिश
सरकार इन वादों से मुकर गई।
- ऐसी स्थिति
मेँ भारतीय
मुसलमानोँ का असंतोष अपने
चरम पर था। महात्मा
गांधी के आहवान पर हिंदुओं ने भी मुसलमानोँ का साथ दिया। 1919 में डॉ. अंसारी
के नेतृत्व
मेँ एक शिष्टमंडल वायसराय
से मिलने
भेजा गया,
परंतु इसका
कोई परिणाम
नहीँ निकला।
- मई, 1920 मेँ अखिल भारतीय
खिलाफत समिति
की स्थापना
की गई। इस समिति
ने अपने
कार्यक्रम मेँ सरकार के विरुद्ध असहयोग
की नीति
अपनाई।
- दिसंबर, 1920 मेँ कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन
मेँ विजय
राघवाचारी की अध्यक्षता मेँ स्वराज के साथ खिलाफत
का प्रश्न
भी जोड़
दिया गया।
14. असहयोग आंदोलन (1920 ईस्वी )
- प्रथम विश्व
युद्ध के पश्चात् आत्मनिर्णय की भावना
को बल मिला इसके
साथ ही रौलेट एक्ट,
जलियांवाला बाग हत्याकांड, पंजाब
मेँ मार्शल
ला तथा खिलाफत के विवाद आदि घटनाओं से अंग्रेजों के प्रति भारतीय
दृष्टिकोण मेँ व्यापक परिवर्तन आया।
- जनता इन घटनाओं के लिए सरकार
से खेद प्रकट करने
की अपेक्षा
कर रही थी। इसके
विपरीत परिस्थितियोँ मेँ आंदोलन
के एक और चक्र
के प्रारंभ
के लिए वह तैयार
थी।
- 1920 मेँ नागपुर
मेँ आयोजित
कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन,
जिसकी अध्यक्षता विजय राघवाचारी कर रहै थे, मेँ असहयोग आंदोलन
का अनुमोदन
कर दिया
गया।
- सरकार ने इस आंदोलन
को कुचलने
के लिए दमनात्मक नीति
का सहारा
लिया आंदोलन
के स्वरुप
मेँ स्थान
परिवर्तन के साथ-साथ भिन्नता आई।
- 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा
नामक गाँव
मेँ तीन हजार किसानो
के एक कांग्रेसी जुलूस
पर पुलिस
ने गोली
चलाई। किसानो
की खुद भीड़ ने थाने पर हमला करके
थाने मेँ आग लगा दी। जिसमें
22 पुलिसकर्मी मारे
गए।
- गांधीजी चूँकि
हिंसा मेँ विश्वास नहीँ
करते थे, इसलिए उनहोने
12 फरवरी 1922 को बारदोली मेँ हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक मेँ असहयोग आंदोलन
को वापस
लेने का निर्णय किया।
संगठन - संस्थापक - वर्ष - देश
1. इण्डिया हाउस
- श्यामजी कृष्ण
वर्मा - 1904 - लंदन
(इंग्लैण्ड)
2. अभिनव भारत
- वी.डी.सावरकर - 1906 - लंदन
(इंग्लैण्ड)
3. ग़दर पार्टी
- लाला हरदयाल
- 1907 - सेन फ्रांसिस्को (अमेरिका)
4. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग - लाला
हरदयाल - 1914 - बर्लिन
(जर्मनी)
5. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग एंड गवर्नमेंट - राजा
महेंद्र प्रताप
- 1915 - काबुल (अफगानिस्तान)
6. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग - रास बिहारी बोस
- 1942 - टोकियो (जापान)
15. विदेशों में भारतीय संगठन
संगठन - संस्थापक - वर्ष - देश
1. इण्डिया हाउस
- श्यामजी कृष्ण
वर्मा - 1904 - लंदन
(इंग्लैण्ड)
2. अभिनव भारत
- वी.डी.सावरकर - 1906 - लंदन
(इंग्लैण्ड)
3. ग़दर पार्टी
- लाला हरदयाल
- 1907 - सेन फ्रांसिस्को (अमेरिका)
4. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग - लाला
हरदयाल - 1914 - बर्लिन
(जर्मनी)
5. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग एंड गवर्नमेंट - राजा
महेंद्र प्रताप
- 1915 - काबुल (अफगानिस्तान)
6. इंडियन इंडिपेंडेंस लीग - रास बिहारी बोस
- 1942 - टोकियो (जापान)
16. साइमन आयोग
- साइमन आयोग
की नियुक्ति और उसके
विरोध के पश्चात भारत
सचिव ने भारतीयोँ की क्षमता पर प्रश्नचिंह लगाते
हुए उन्हें
अपने लिए एक सर्वमांय संविधान बनाने
की चुनौती
दी।
- डॉ. मुख्तार
अहमद अंसारी
की अध्यक्षता मेँ एक सर्वदलीय सम्मेलन
का आयोजन
19 मई, 1926 को किया गया।
इस सम्मेलन
के अंत मेँ मोतीलाल
नेहरु की अध्यक्षता मेँ एक समिति
गठित की गई।
- इस समिति
10 अगस्त, 1928 को लखनऊ मेँ हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन
मेँ अपने,
संविधान का प्रारुप पेश किया, जिसे
नेहरु रिपोर्ट
के नाम से जाना
जाता है।
- रिपोर्ट मेँ भारत को डोमेनियन राज्य
का दर्जा
दिए जाने
की मांग
पर बहुमत
था लेकिन
राष्ट्रवादियोँ के एक वर्ग
को इस पर आपत्ति
थी। वह डोमेनियन राज्य
के स्थान
पर पूर्ण
स्वतंत्रता का समर्थन कर रहे थे।
- लखनऊ मेँ डाक्टर अंसारी
की अध्यक्षता मेँ पुनः
सर्वदलीय सम्मेलन
हुआ, जिसमेँ
‘नेहरु रिपोर्ट’ को स्वीकार कर लिया गया।
17. नेहरू रिपोर्ट (1928)
- फ़रवरी 1930 मेँ साबरमती आश्रम
मेँ कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक मेँ सविनय अवज्ञा
आंदोलन चलाने
की संपूर्ण
शक्ति महात्मा
गांधी के हाथ मेँ सौंप दी गई।
- गांधीजी ने
31 जनवरी, 1930 को लार्ड इरविन
के समक्ष
अंतिम चेतावनी
के रुप मेँ अपनी
11 सूत्री मांग
रखी, जिसे
अस्वीकार किए जाने पर सविनय अवज्ञा
आंदोलन प्रारंभ
करने की चेतावनी दी।
- लॉर्ड इरविन
द्वारा 11 सूत्री
मांगोँ को अस्वीकार कर दिया जाने
के बाद गांधी जी के समक्ष
आंदोलन शुरु
करने के अतिरिक्त और कोई चारा
नहीँ था।
- गांधी जी ने 12 मार्च,
1930 को अपने
चुने हुए
78 स्वयं सेवको
के साथ दांडी के लिए यात्रा
शुरु की।
24 दिनोँ मेँ दांडी पहुंचकर
महात्मा गांधी
ने 6 अप्रैल
को नमक कानून का उल्लंघन किया।
- बंगाल मेँ मानसून के आगमन की वजह से नमक बनाना
कठिन था, अतः वहां
यह आंदोलन
चौकीदारी विरोधी
तथा यूनियन
बोर्ड विरोधी
आंदोलन के रुप मेँ चलाया गया।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक
तथा मध्य
प्रांत मेँ जंगल कानूनो
कथा असम मेँ कनिंघम
सर्कुलर, जिसके
अंतर्गत छात्रों
तथा उनके
परिजनोँ को चारित्रिक प्रमाणपत्र प्राप्त प्रस्तुत करने होते
थे, का विरोध प्रारंभ
हुआ।
- निर्ममता पूर्वक
दमन के बाद भी यहाँ आंदोलन
की तीव्र
गति को देख कर लार्ड इरविन
ने महात्मा
गांधी से समझौते का प्रयास किया।
सरकार द्वारा
यह आश्वासन
दिए जाने
पर कि हानि उठाने
वालोँ को हर्जाना मिलेगा।
5 मार्च, 1931 को गांधी इरविन
समझौते के बाद आंदोलन
वापस ले लिया गया।
18. सविनय अवज्ञा आंदोलन
सम्मलेन - तिथि
- वायसरॉय - उद्देश्य - टिपण्णी
1. प्रथम - नवम्बर
1930 - जनवरी 1931 - लार्ड
इरविन - साइमन
आयोग के सुझावों पर विचार करने
के लिए
- 1.कांग्रेस ने इस सम्मलेन
में भाग नहीं लिया।
2. इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने की थी। 3. इसमें
कुल 89 सदस्य
शामिल हुए।
2. द्वितीय - सितम्बर
– दिसंबर
1931) - लार्ड विलिंग्डन - संघीय ढांचे
पर विचार
करना तथा अल्पसंख्यको के हितों की रक्षा हेतु
- 1. कांग्रेस ने इसमें भाग लिया। 2. इसमें
कुल 107 सदस्य
शामिल हुए।
3. किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं
हो पाई।
3. तृतीय - नवम्बर
- दिसम्बर 1932) - लार्ड
विलिंग्डन - भारत
में शासन
सुधारों पर विचार करने
हेतु - 1. इसमें
कुल 46 सदस्यों
ने भाग लिया। 2. कांग्रेस ने इसमें
भाग नहीं
लिया।
19. गोलमेज सम्मेलन (1930 ईस्वी से 1923 ईस्वी)
- 5 मार्च 1931 को गाँधी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ,
जिसे गांधी-इरविन समझौता
के नाम से जाना
जाता है।
- इस समझौता
के तहत लार्ड इरविन
ने निम्न
आश्वासन दिया
- सभी राजनीतिक बंदियोँ को रिहा किया
जाएगा।
- आपातकालीन अध्यादेशों को वापस
ले लिया
जाएगा।
- आंदोलन के दोरान जब्त
की गई संपत्ति उनके
स्वामियों को वापस कर दी जाएगी
तथा जिनकी
संपत्ति नष्ट
हो गई हो, उन्हें
हर्जाना दिया
जाएगा।
- समुद्र तट के निकट
रहने वाले
लोगोँ को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिए नमक एकत्र
करने तथा बनाने दिया
जाएगा।
- सरकार मादक
द्रव्योँ तथा विदेशी वस्तुओं
की दुकानोँ
पर शांतिपूर्ण धरना देने
वालोँ को गिरफ्तार नहीँ
करेगी।
- जिन सरकारी
कर्मचारियोँ ने आंदोलन के दौरान नौकरी
से त्यागपत्र दिया था, उन्हें नौकरी
मेँ वापस
लेने मेँ सरकार उदार
नीति अपनायेगी।
20. गांधी इरविन समझौता
- सितंबर 1932 मेँ गांधी जी और अंबेडकर
के बीच एक समझौता
हुआ, जिसे
पूना समझौता
के नाम से जाना
जाता है।
- इस समझौते
मेँ सभी अल्पसंख्यक समुदायोँ, हरिजनोँ, मुसलमानोँ, सिखों आदि के लिए संघीय विधान
परिषद मेँ पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था थी।
- इसके तहत मुसलमान केवल
मुसलमानोँ द्वारा,
सिख केवल
सिक्खों द्वारा
तथा अन्य
अल्पसंख्यक समुदाय
केवल अपने
समुदाय द्वारा
चुने जा सकते थे।
- गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मेँ बंदी
थे, ने इसे भारतीय
एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने
की स्थिति
मेँ 20 सितंबर,
1932 को आमरण
अनशन प्रारंभ
कर दिया।
- इस समझौते
के तहत्
दलित वर्ग
के लिए एक पृथक
निर्वाचक मंडल
की व्यवस्था वापस ले ली गयी।
- पूना समझौते
के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा
हिंदुओं से हरीजनोँ को पृथक करने
के सरकारी
प्रयास को विफल कर दिया गया।
21. पुणे समझौता (1932 ईस्वी)
- भारत सरकार
अधिनियम, 1935 के प्रावधानोँ के अनुकूल सरकार
ने प्रांतो
मेँ फ़रवरी
1931 मेँ चुनाव
कराने की घोषणा की।
- फ़रवरी 1937 मेँ संपन्न हुए चुनावों मेँ यह बात निश्चित रुप से सिद्ध
हो गई की जनता
का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है।
- 1937 के चुनावों
मेँ कांग्रेस ने अधिकांश
प्रांतो मेँ भारी जीत हासिल की।
11 में से 7
प्रांतो मेँ कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत
अच्छा रहा।
- जुलाई 1937 मेँ
11 में से 7
प्रांतो मेँ कांग्रेसी मंत्रिमंडल गठित हुए।
बाद मेँ कांग्रेस ने दो प्रांतोँ मेँ साझी
सरकारें भी बनाई। केवल
बंगाल और पंजाब मेँ गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके।
- 3 सितंबर, 1939 को वायसराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्रिमंडलों या राष्ट्रीय भारतीय
कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एकतरफा
तौर पर भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन
के युद्ध
मेँ झोंक
दिया।
- इस एकतरफा
निर्णय के विरोध मेँ
29-30 अक्टूबर, 1939 को प्रांतो के कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने
28 महीने के शासन के पश्चात त्याग
पत्र दे दिया।
22. 1935 का चुनाव और प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल
- युद्ध में भारतीयोँ का सहयोग प्राप्त
करने के उद्देश्य से 8
अगस्त, 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की, जिसे अगस्त
प्रस्ताव के नाम से जाना जाता
है
- वायसराय के प्रस्ताव मेँ निन्नलिखित बातेँ
कही गई थी
1. वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद
का विस्तार
किया जाएगा;
2. वायसरॉय द्वारा
भारतीय राज्यों,
भारत के राष्ट्रीय जीवन
से संबंधित
अन्य हितों
के प्रतिनिधियों की एकजुट
परामर्श समिति
की स्थापना
की जाएगी;
3. भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुख्यत:
भारतीयोँ का उत्तरदायित्व होगा।
युद्धोपरांत भारत
के लिए नवीन संविधान
निर्माण हेतु
राष्ट्रीय जीवन
से सम्बद्ध
व्यक्तियों के एक निकाय
का गठन किया जाएगा;
4. युद्ध समाप्ति
के एक वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना
ब्रिटिश सरकार
की घोषित
नीति है;
5. अल्पसंख्यको को पूर्ण महत्व
प्रदान करने
का आश्वासन
दिया गया।
6. यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति
थी, क्योंकि
इसमेँ कहा गया था कि, भारत
का संविधान
बनाना भारतीयों का अपना
अधिकार है, और इसमेँ
स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी।
23. अगस्त प्रस्ताव (1940 ईस्वी)
1941 मेँ सुदूर
पूर्व मेँ जापान द्वारा
ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 मेँ जापान की भारतीय सीमा
पर दस्तक,
इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्धकालीन मंत्रिमंडल के रुख मेँ नरमी आ गई।
- भारत मेँ संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त
करने के उद्देश्य से ब्रिटिश हाऊस
ऑफ कॉमंस
के नेता
तथा युद्धकालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य
स्टेफर्ड क्रिप्स
को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत
भेजा गया।
- मार्च 1948 मेँ यह मशविरा
कार्यकारी परिषद्
तथा भारतीय
राजनेताओं के सम्मुख रखा गया।
- लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गो के असंतोष को देख यह घोषणा केवल
सभी भारतीयोँ की युद्ध
मेँ सहायता
प्राप्त करने
का एक उपाय मात्र
था। इसमेँ
भारतीय समस्या
के समाधान
के लिए कोई विशेष
प्रयास नहीँ
किया गया था।
24. क्रिप्स मिशन 1942 ईस्वी
- 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा
मेँ एक प्रस्ताव पारित
किया, जिसमें
अंग्रेजो को भारत से चले जाने
के लिए कहा गया था, तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत
नहीँ होती
है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा
आंदोलन चलाने
के लिए बाध्य हो जाएगी।
- पूरे देश मेँ कारखानो,
स्कूल और कॉलेजों मेँ हड़तालें और कामबंदी हुई,
जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई
गयीं।
- बार बार की गोलीबारी और दमन से क्रुद्ध
होकर जनता
ने अनेक
जगहोँ पर हिंसक कार्यवाहियों भी की। जनता ने पुलिस थानोँ,
डाकखानों, रेलवे
स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन
के तमाम
प्रतीको पर हमले किए।
- उत्तरी और पश्चिमी बिहार
और पूर्वी
संयुक्त प्रांत,बंगाल में मिदनापुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से
आन्दोलन के प्रमुख केंद्र
रहे, जिसमे
बलिया, तामलुक,
सतारा आदि स्थानों पर समानांतर सरकारों
की स्थापना
की गई, जो प्रायः
दीर्घजीवी सिद्ध
नहीं हुई।
25. भारत छोड़ो आंदोलन सन 1942
- रास बिहारी
बोस ने जापान मेँ इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। इसके बाद
11 सितंबर 1941 को उन्होंने इंडियन
नेशनल आर्मी
की स्थापना
की।
- 18 फरवरी, 1942 को मोहन सिंह
इस सेना
के जनरल
बनाये गए। जब सुभाष
चंद्र बोस अप्रैल, 1943 मेँ पहुंचे तो जुलाई, 1943 को राज बिहारी
बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद
फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाष चंद्र
बोस को इनका दायित्व
सौंप दिया
गया।
- सुभाष चंद्र
बोस सिंगापुर लौट गए वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत
की अस्थाई
सरकार की स्थापना की तथा रंगून
और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया गया।
- 1945 मेँ जापान
की युद्ध
मेँ पराजय
ने भारत
को आजाद
कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया। फ़ौज के अधिकांश
सेनिक बंदी
बना लिया
गए। जब इन सैनिकों
को पर मुकदमे चलने
लगे तो इन्हें जनता
का भारी
समर्थन मिला।
- जवाहरलाल नेहरु,
तेज बहादुर
सप्रू तथा भूलाभाई देसाई
ने इन सैनिकों की पैरवी की। जनदबाव मेँ सरकार को झुकना पड़ा।
- सुभाष चंद्र
बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात
नारा तथा अपने अनुयायियोँ को जय हिंद का मूल मंत्र
दिया।
- द्वितीय विश्व
युद्धोत्तर भारत
मेँ लोगोँ
की चेतना
और राष्ट्रीय भावना का उद्वेलन करने
मेँ आजाद
हिंद फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
26. सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
समिति आयोग
- कार्य क्षेत्र
1. पेल्वी आयोग
- धन निकासी
के मामले
की जाँच
2. इंडियन स्टे्टरी समिति - केन्द्रीय प्रांतीय सरकारों
की राजस्व
मदों का विभाजन
3. फ्लाउड आयोग
– 1940 - कृषक
व भूमि
मालिक के बीच उत्पादन
का विभाजन
4. टॉमसन योजना
– 1843 - देशी
भाषा में शिक्षा देने
की सिफारिश
5. वुड डिस्पैच
– 1854 - शिक्षा
प्रणाली में सुधार
6. हंटर आयोग
– 1882-83 - प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में सुधार
7. रैले आयोग
– 1902 - विश्वविद्यालयी शिक्षा
में सुधार
8. हर्टोग आयोग
– 1929 - प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्त्व
पर जोर
9. सैडलर आयोग
– 1917-19 - महिला
शिक्षा के लिए स्वायत्त संस्थाओं की स्थापना
10. सार्जेन्ट आयोग
– 1944 - राष्ट्रीय शिक्षा की योजना
27. शिमला समझौता तथा वेवेल योजना
- अक्टूबर 1940 मेँ लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान
पर लार्ड
वेवेल भारत
के वायसराय
तथा गवर्नर
बने। उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने
के उद्देश्य से एक विस्तृत योजना
बनाई, जो उनके नाम पर वेवेल
योजना के नाम से जानी जाती
है। वेवेल
योजना की घोषणा 14 जून,
1945 को की गई। योजना
के मुख्य
प्रावधान निंलिखित थे।
- ब्रिटिश शासन
राजनीतिक गतिरोध
को समाप्त
करके भारत
को स्वशासन
के लक्ष्य
की ओर अग्रसर करना
चाहता है।
- वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन इस तरह किया
जाए कि, वायसराय तथा प्रधान सेनापति
को छोडकर
शेष सदस्य
भारतीय हों।
- कार्यकारी परिषद
मेँ हिंदू
तथा मुसलमान
सदस्योँ की संख्या बराबर
होगी।
- विदेश विभाग
भारतीय सदस्योँ
के हाथ मेँ होगा।
- एक ब्रिटिश
उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी, जो भारतीय वाणिज्य
तथा दूसरे
हितो की देखभाल करेगा।
- नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य
करेगी।
- भारत सचिव
शक्ति को सीमित किया
जाएगा, जबकी
वायसराय के वीटो के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा।
28. कैबिनेट मिशन योजना सन 1946
- वेवेल योजना
और शिमला
शिमला समझौता
दोनो के विफल हो जाने के पश्चात भारत
मेँ राजनीतिक गतिरोध को दूर करने
के लिए कैबिनेट मिशन
को भारत
भेजा गया।
- इस शिष्टमंडल मेँ तीन सदस्य थे -
पैथिक लॉरेंस,
सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर। यह शिष्टमंडल 24 मार्च,
1946 को दिल्ली
पहुंचा।
- भारत के विभिन्न राजनीतिक दलो से लंबी बातचीत
के बाद एक त्रिपक्षीय सम्मेलन, सरकार,
कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच शिमला मेँ आयोजित किया
गया।
- कैबिनेट मिशन
ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उसका
उद्देश्य संविधान
का निर्धारण करना नहीँ
है, बल्कि
उस तंत्र
को सक्रिय
बनाना है, जिसके द्वारा
भारतीयों के लिए संविधान
तय किया
जा सके।
- कैबिनेट मिशन
योजना का महत्व इस बात मेँ नहीँ था कि इसमें
भारतीय एकता
को सुरक्षित रखा गया था तथा पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रुप से अमान्य
कर दिया
गया था।
29. अंतरिम सरकार का गठन 1946 ईस्वी
- जवाहरलाल नेहरु
के नेतृत्व
मेँ उनके
11 सहयोगियोँ के साथ 2 सितंबर
1946 को अंतरिम
सरकार का गठन किया
गया। इस मेँ मुस्लिम
लीग के सदस्य शामिल
नहीँ हुए।
- मुस्लिम लीग ने कांग्रेस लीग की समानता पर बल दिया।
ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट
मिशन योजना
को ठुकरा
दिया।
- आरंभ मेँ मुस्लिम लीग सरकार मेँ शामिल नहीँ
हुई थी, परन्तु वायसराय
के प्रयासों से वह
26 अक्टूबर 1946 को सरकार मेँ शामिल हुई।
सरकार मेँ उसके 5 सदस्य
थे - लियाकत
अली, गजनफ़र
अली, चंद्रीगर, अब्दुल, खनश्तर,
तथा योगेंद्र नाथ मांडल।
30. एटली की घोषणा
- कांग्रेस लीग टकराव संविधान
सभा की बैठक मेँ लीग के भाग न लेने तथा उसके द्वारा
चलाए जा रहे प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
के परिणाम
स्वरुप भारत
मेँ दंगे
विकराल रुप धारण करते
जा रहै थे।
- राजनीतिक गतिरोध
को दूर करने के लिए ब्रिटेन
के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली
ने 20 फरवरी,
1947 को घोषणा
की, कि ब्रिटिश सरकार
जून 1947 के पूर्व सत्ता
भारतीयोँ को सौंप देगी।
- ब्रिटिश संसद
मेँ यद्यपि
इस घोषणा
की काफी
आलोचना हुई परंतु अंततः
स्वीकृत हो गई।
- इसी घोषणा
के साथ सत्ता का सफलतापूर्वक हस्तांतरण करने के लिए लॉर्ड
माउंटबेटन को भारत भेजा
गया।
31. माउंटबेटन योजना ( जून 1947)
- मार्च 1947 मेँ लार्ड माउंटबेटन को भारत
का वायसराय
बनाकर भेजा
गया।
- लार्ड माउंटबेटन ने भारत
और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं
के साथ बातचीत करके
एक योजना
तैयार की जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता
है।
- माउंटबेटन द्वारा
इस योजना
की घोषणा
3 जून, 1947 को की गई, जिसमे हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुगम
बनाने तथा दोनों मुख्य
संप्रदायोँ का समायोजन करने
के लिए देश को दो भागोँ
- भारत और पाकिस्तान मेँ विभाजित करने
का परामर्श
दिया गया।
- इस योजना
के द्वारा
यह निर्णय
लिया गया कि 15 अगस्त,
1947 को भारत
और पाकिस्तान को सत्ता
का हस्तांतरण डोमिनियन स्टेटस
के आधार
पर कर दिया जाएगा।
- कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलो ने इस योजना
को अपनी
स्वीकृति दे दी। इसके
उपरांत ब्रिटिश
संसद मेँ किस योजना
को कार्य
रुप देने
के लिए एक विधेयक
पारित किया
गया।
32. सत्ता का हस्तांतरण भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947
- माउंटबेटन की योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद
मेँ एक विधेयक 4 जुलाई,
1947 को प्रस्तुत किया गया।
यह विधेयक
18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रुप मेँ पारित हुआ।
इसकी प्रमुख
बातेँ निम्नलिखित थी-
1. 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र अधिराज्यों भारत
तथा पाकिस्तान की स्थापना
की जाएगी।
2. नए संविधान
के बनने
और लागू
होने तक वर्तमान संविधान
सभायें ही विधानसभाओं के रुप मेँ
1935 के एक्ट
के तहत ही कार्य
करेंगी।
3. ब्रिटिश क्राउन
का भारतीय
रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त
हो जाएगा।
4. भारत सचिव
का पद समाप्त कर उसके स्थान
पर एक राष्ट्रमंडलीय मामलोँ
के सचिव
की नियुक्ति करने की व्यवस्था की गई।
5. दोनों राज्योँ
के लिए राज्य मंत्रिमंडल के सुझाव
पर पृथक
गवर्नर जनरल
की नियुक्ति की जाएगी।
- इस अधिनियम
द्वारा 15 अगस्त
1947 को भारत
को दो स्वतंत्रता डोमिनियनों - भारत तथा पाकिस्तान मेँ बांट दिया
गया। पाकिस्तान के प्रथम
गवर्नर जनरल
मोहम्मद अली जिन्ना बने तथा भारत
के लिए माउंटबेटन को ही गवर्नर
जनरल बने रहने को कहा गया।
16. साइमन आयोग
- साइमन आयोग
की नियुक्ति और उसके
विरोध के पश्चात भारत
सचिव ने भारतीयोँ की क्षमता पर प्रश्नचिंह लगाते
हुए उन्हें
अपने लिए एक सर्वमांय संविधान बनाने
की चुनौती
दी।
- डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी की अध्यक्षता मेँ एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन 19 मई, 1926 को किया गया। इस सम्मेलन के अंत मेँ मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता मेँ एक समिति गठित की गई।
- इस समिति
10 अगस्त, 1928 को लखनऊ मेँ हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन
मेँ अपने,
संविधान का प्रारुप पेश किया, जिसे
नेहरु रिपोर्ट
के नाम से जाना
जाता है।
- रिपोर्ट मेँ भारत को डोमेनियन राज्य
का दर्जा
दिए जाने
की मांग
पर बहुमत
था लेकिन
राष्ट्रवादियोँ के एक वर्ग
को इस पर आपत्ति
थी। वह डोमेनियन राज्य
के स्थान
पर पूर्ण
स्वतंत्रता का समर्थन कर रहे थे।
- लखनऊ मेँ डाक्टर अंसारी
की अध्यक्षता मेँ पुनः
सर्वदलीय सम्मेलन
हुआ, जिसमेँ
‘नेहरु रिपोर्ट’ को स्वीकार कर लिया गया।
- गांधीजी ने
31 जनवरी, 1930 को लार्ड इरविन
के समक्ष
अंतिम चेतावनी
के रुप मेँ अपनी
11 सूत्री मांग
रखी, जिसे
अस्वीकार किए जाने पर सविनय अवज्ञा
आंदोलन प्रारंभ
करने की चेतावनी दी।
- लॉर्ड इरविन
द्वारा 11 सूत्री
मांगोँ को अस्वीकार कर दिया जाने
के बाद गांधी जी के समक्ष
आंदोलन शुरु
करने के अतिरिक्त और कोई चारा
नहीँ था।
- गांधी जी ने 12 मार्च,
1930 को अपने
चुने हुए
78 स्वयं सेवको
के साथ दांडी के लिए यात्रा
शुरु की।
24 दिनोँ मेँ दांडी पहुंचकर
महात्मा गांधी
ने 6 अप्रैल
को नमक कानून का उल्लंघन किया।
- बंगाल मेँ मानसून के आगमन की वजह से नमक बनाना
कठिन था, अतः वहां
यह आंदोलन
चौकीदारी विरोधी
तथा यूनियन
बोर्ड विरोधी
आंदोलन के रुप मेँ चलाया गया।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक
तथा मध्य
प्रांत मेँ जंगल कानूनो
कथा असम मेँ कनिंघम
सर्कुलर, जिसके
अंतर्गत छात्रों
तथा उनके
परिजनोँ को चारित्रिक प्रमाणपत्र प्राप्त प्रस्तुत करने होते
थे, का विरोध प्रारंभ
हुआ।
- निर्ममता पूर्वक
दमन के बाद भी यहाँ आंदोलन
की तीव्र
गति को देख कर लार्ड इरविन
ने महात्मा
गांधी से समझौते का प्रयास किया।
सरकार द्वारा
यह आश्वासन
दिए जाने
पर कि हानि उठाने
वालोँ को हर्जाना मिलेगा।
5 मार्च, 1931 को गांधी इरविन
समझौते के बाद आंदोलन
वापस ले लिया गया।
1. प्रथम - नवम्बर 1930 - जनवरी 1931 - लार्ड इरविन - साइमन आयोग के सुझावों पर विचार करने के लिए - 1.कांग्रेस ने इस सम्मलेन में भाग नहीं लिया। 2. इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने की थी। 3. इसमें कुल 89 सदस्य शामिल हुए।
2. द्वितीय - सितम्बर
– दिसंबर
1931) - लार्ड विलिंग्डन - संघीय ढांचे
पर विचार
करना तथा अल्पसंख्यको के हितों की रक्षा हेतु
- 1. कांग्रेस ने इसमें भाग लिया। 2. इसमें
कुल 107 सदस्य
शामिल हुए।
3. किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं
हो पाई।
3. तृतीय - नवम्बर
- दिसम्बर 1932) - लार्ड
विलिंग्डन - भारत
में शासन
सुधारों पर विचार करने
हेतु - 1. इसमें
कुल 46 सदस्यों
ने भाग लिया। 2. कांग्रेस ने इसमें
भाग नहीं
लिया।
19. गोलमेज सम्मेलन (1930 ईस्वी से 1923 ईस्वी)
- इस समझौता
के तहत लार्ड इरविन
ने निम्न
आश्वासन दिया
- सभी राजनीतिक बंदियोँ को रिहा किया
जाएगा।
- आपातकालीन अध्यादेशों को वापस
ले लिया
जाएगा।
- आंदोलन के दोरान जब्त
की गई संपत्ति उनके
स्वामियों को वापस कर दी जाएगी
तथा जिनकी
संपत्ति नष्ट
हो गई हो, उन्हें
हर्जाना दिया
जाएगा।
- समुद्र तट के निकट
रहने वाले
लोगोँ को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिए नमक एकत्र
करने तथा बनाने दिया
जाएगा।
- सरकार मादक
द्रव्योँ तथा विदेशी वस्तुओं
की दुकानोँ
पर शांतिपूर्ण धरना देने
वालोँ को गिरफ्तार नहीँ
करेगी।
- जिन सरकारी
कर्मचारियोँ ने आंदोलन के दौरान नौकरी
से त्यागपत्र दिया था, उन्हें नौकरी
मेँ वापस
लेने मेँ सरकार उदार
नीति अपनायेगी।
- सितंबर 1932 मेँ गांधी जी और अंबेडकर
के बीच एक समझौता
हुआ, जिसे
पूना समझौता
के नाम से जाना
जाता है।
- इस समझौते
मेँ सभी अल्पसंख्यक समुदायोँ, हरिजनोँ, मुसलमानोँ, सिखों आदि के लिए संघीय विधान
परिषद मेँ पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था थी।
- इसके तहत मुसलमान केवल
मुसलमानोँ द्वारा,
सिख केवल
सिक्खों द्वारा
तथा अन्य
अल्पसंख्यक समुदाय
केवल अपने
समुदाय द्वारा
चुने जा सकते थे।
- गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मेँ बंदी
थे, ने इसे भारतीय
एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने
की स्थिति
मेँ 20 सितंबर,
1932 को आमरण
अनशन प्रारंभ
कर दिया।
- इस समझौते
के तहत्
दलित वर्ग
के लिए एक पृथक
निर्वाचक मंडल
की व्यवस्था वापस ले ली गयी।
- पूना समझौते
के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा
हिंदुओं से हरीजनोँ को पृथक करने
के सरकारी
प्रयास को विफल कर दिया गया।
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानोँ के अनुकूल सरकार ने प्रांतो मेँ फ़रवरी 1931 मेँ चुनाव कराने की घोषणा की।
- फ़रवरी 1937 मेँ संपन्न हुए चुनावों मेँ यह बात निश्चित रुप से सिद्ध
हो गई की जनता
का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है।
- 1937 के चुनावों
मेँ कांग्रेस ने अधिकांश
प्रांतो मेँ भारी जीत हासिल की।
11 में से 7
प्रांतो मेँ कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत
अच्छा रहा।
- जुलाई 1937 मेँ
11 में से 7
प्रांतो मेँ कांग्रेसी मंत्रिमंडल गठित हुए।
बाद मेँ कांग्रेस ने दो प्रांतोँ मेँ साझी
सरकारें भी बनाई। केवल
बंगाल और पंजाब मेँ गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके।
- 3 सितंबर, 1939 को वायसराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्रिमंडलों या राष्ट्रीय भारतीय
कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एकतरफा
तौर पर भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन
के युद्ध
मेँ झोंक
दिया।
- इस एकतरफा
निर्णय के विरोध मेँ
29-30 अक्टूबर, 1939 को प्रांतो के कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने
28 महीने के शासन के पश्चात त्याग
पत्र दे दिया।
- युद्ध में भारतीयोँ का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से 8 अगस्त, 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की, जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
- वायसराय के प्रस्ताव मेँ निन्नलिखित बातेँ
कही गई थी
1. वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद
का विस्तार
किया जाएगा;
2. वायसरॉय द्वारा
भारतीय राज्यों,
भारत के राष्ट्रीय जीवन
से संबंधित
अन्य हितों
के प्रतिनिधियों की एकजुट
परामर्श समिति
की स्थापना
की जाएगी;
3. भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुख्यत:
भारतीयोँ का उत्तरदायित्व होगा।
युद्धोपरांत भारत
के लिए नवीन संविधान
निर्माण हेतु
राष्ट्रीय जीवन
से सम्बद्ध
व्यक्तियों के एक निकाय
का गठन किया जाएगा;
4. युद्ध समाप्ति
के एक वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना
ब्रिटिश सरकार
की घोषित
नीति है;
5. अल्पसंख्यको को पूर्ण महत्व
प्रदान करने
का आश्वासन
दिया गया।
6. यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति
थी, क्योंकि
इसमेँ कहा गया था कि, भारत
का संविधान
बनाना भारतीयों का अपना
अधिकार है, और इसमेँ
स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी।
1941 मेँ सुदूर पूर्व मेँ जापान द्वारा ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 मेँ जापान की भारतीय सीमा पर दस्तक, इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्धकालीन मंत्रिमंडल के रुख मेँ नरमी आ गई।
- भारत मेँ संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त
करने के उद्देश्य से ब्रिटिश हाऊस
ऑफ कॉमंस
के नेता
तथा युद्धकालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य
स्टेफर्ड क्रिप्स
को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत
भेजा गया।
- मार्च 1948 मेँ यह मशविरा
कार्यकारी परिषद्
तथा भारतीय
राजनेताओं के सम्मुख रखा गया।
- लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गो के असंतोष को देख यह घोषणा केवल
सभी भारतीयोँ की युद्ध
मेँ सहायता
प्राप्त करने
का एक उपाय मात्र
था। इसमेँ
भारतीय समस्या
के समाधान
के लिए कोई विशेष
प्रयास नहीँ
किया गया था।
- 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा
मेँ एक प्रस्ताव पारित
किया, जिसमें
अंग्रेजो को भारत से चले जाने
के लिए कहा गया था, तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत
नहीँ होती
है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा
आंदोलन चलाने
के लिए बाध्य हो जाएगी।
- पूरे देश मेँ कारखानो,
स्कूल और कॉलेजों मेँ हड़तालें और कामबंदी हुई,
जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई
गयीं।
- बार बार की गोलीबारी और दमन से क्रुद्ध
होकर जनता
ने अनेक
जगहोँ पर हिंसक कार्यवाहियों भी की। जनता ने पुलिस थानोँ,
डाकखानों, रेलवे
स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन
के तमाम
प्रतीको पर हमले किए।
- उत्तरी और पश्चिमी बिहार
और पूर्वी
संयुक्त प्रांत,बंगाल में मिदनापुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से
आन्दोलन के प्रमुख केंद्र
रहे, जिसमे
बलिया, तामलुक,
सतारा आदि स्थानों पर समानांतर सरकारों
की स्थापना
की गई, जो प्रायः
दीर्घजीवी सिद्ध
नहीं हुई।
- रास बिहारी
बोस ने जापान मेँ इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। इसके बाद
11 सितंबर 1941 को उन्होंने इंडियन
नेशनल आर्मी
की स्थापना
की।
- 18 फरवरी, 1942 को मोहन सिंह
इस सेना
के जनरल
बनाये गए। जब सुभाष
चंद्र बोस अप्रैल, 1943 मेँ पहुंचे तो जुलाई, 1943 को राज बिहारी
बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद
फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाष चंद्र
बोस को इनका दायित्व
सौंप दिया
गया।
- सुभाष चंद्र
बोस सिंगापुर लौट गए वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत
की अस्थाई
सरकार की स्थापना की तथा रंगून
और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया गया।
- 1945 मेँ जापान
की युद्ध
मेँ पराजय
ने भारत
को आजाद
कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया। फ़ौज के अधिकांश
सेनिक बंदी
बना लिया
गए। जब इन सैनिकों
को पर मुकदमे चलने
लगे तो इन्हें जनता
का भारी
समर्थन मिला।
- जवाहरलाल नेहरु,
तेज बहादुर
सप्रू तथा भूलाभाई देसाई
ने इन सैनिकों की पैरवी की। जनदबाव मेँ सरकार को झुकना पड़ा।
- सुभाष चंद्र
बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात
नारा तथा अपने अनुयायियोँ को जय हिंद का मूल मंत्र
दिया।
- द्वितीय विश्व
युद्धोत्तर भारत
मेँ लोगोँ
की चेतना
और राष्ट्रीय भावना का उद्वेलन करने
मेँ आजाद
हिंद फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
समिति आयोग
- कार्य क्षेत्र
1. पेल्वी आयोग
- धन निकासी
के मामले
की जाँच
2. इंडियन स्टे्टरी समिति - केन्द्रीय प्रांतीय सरकारों
की राजस्व
मदों का विभाजन
3. फ्लाउड आयोग
– 1940 - कृषक
व भूमि
मालिक के बीच उत्पादन
का विभाजन
4. टॉमसन योजना
– 1843 - देशी
भाषा में शिक्षा देने
की सिफारिश
5. वुड डिस्पैच
– 1854 - शिक्षा
प्रणाली में सुधार
6. हंटर आयोग
– 1882-83 - प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में सुधार
7. रैले आयोग
– 1902 - विश्वविद्यालयी शिक्षा
में सुधार
8. हर्टोग आयोग
– 1929 - प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्त्व
पर जोर
9. सैडलर आयोग – 1917-19 - महिला शिक्षा के लिए स्वायत्त संस्थाओं की स्थापना
10. सार्जेन्ट आयोग
– 1944 - राष्ट्रीय शिक्षा की योजना
- अक्टूबर 1940 मेँ लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान
पर लार्ड
वेवेल भारत
के वायसराय
तथा गवर्नर
बने। उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने
के उद्देश्य से एक विस्तृत योजना
बनाई, जो उनके नाम पर वेवेल
योजना के नाम से जानी जाती
है। वेवेल
योजना की घोषणा 14 जून,
1945 को की गई। योजना
के मुख्य
प्रावधान निंलिखित थे।
- ब्रिटिश शासन
राजनीतिक गतिरोध
को समाप्त
करके भारत
को स्वशासन
के लक्ष्य
की ओर अग्रसर करना
चाहता है।
- वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन इस तरह किया
जाए कि, वायसराय तथा प्रधान सेनापति
को छोडकर
शेष सदस्य
भारतीय हों।
- कार्यकारी परिषद
मेँ हिंदू
तथा मुसलमान
सदस्योँ की संख्या बराबर
होगी।
- विदेश विभाग
भारतीय सदस्योँ
के हाथ मेँ होगा।
- एक ब्रिटिश
उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी, जो भारतीय वाणिज्य
तथा दूसरे
हितो की देखभाल करेगा।
- नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य
करेगी।
- भारत सचिव
शक्ति को सीमित किया
जाएगा, जबकी
वायसराय के वीटो के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा।
- वेवेल योजना
और शिमला
शिमला समझौता
दोनो के विफल हो जाने के पश्चात भारत
मेँ राजनीतिक गतिरोध को दूर करने
के लिए कैबिनेट मिशन
को भारत
भेजा गया।
- इस शिष्टमंडल मेँ तीन सदस्य थे -
पैथिक लॉरेंस,
सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर। यह शिष्टमंडल 24 मार्च,
1946 को दिल्ली
पहुंचा।
- भारत के विभिन्न राजनीतिक दलो से लंबी बातचीत
के बाद एक त्रिपक्षीय सम्मेलन, सरकार,
कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच शिमला मेँ आयोजित किया
गया।
- कैबिनेट मिशन
ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उसका
उद्देश्य संविधान
का निर्धारण करना नहीँ
है, बल्कि
उस तंत्र
को सक्रिय
बनाना है, जिसके द्वारा
भारतीयों के लिए संविधान
तय किया
जा सके।
- कैबिनेट मिशन
योजना का महत्व इस बात मेँ नहीँ था कि इसमें
भारतीय एकता
को सुरक्षित रखा गया था तथा पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रुप से अमान्य
कर दिया
गया था।
29. अंतरिम सरकार का गठन 1946 ईस्वी
- जवाहरलाल नेहरु
के नेतृत्व
मेँ उनके
11 सहयोगियोँ के साथ 2 सितंबर
1946 को अंतरिम
सरकार का गठन किया
गया। इस मेँ मुस्लिम
लीग के सदस्य शामिल
नहीँ हुए।
- मुस्लिम लीग ने कांग्रेस लीग की समानता पर बल दिया।
ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट
मिशन योजना
को ठुकरा
दिया।
- आरंभ मेँ मुस्लिम लीग सरकार मेँ शामिल नहीँ
हुई थी, परन्तु वायसराय
के प्रयासों से वह
26 अक्टूबर 1946 को सरकार मेँ शामिल हुई।
सरकार मेँ उसके 5 सदस्य
थे - लियाकत
अली, गजनफ़र
अली, चंद्रीगर, अब्दुल, खनश्तर,
तथा योगेंद्र नाथ मांडल।
- कांग्रेस लीग टकराव संविधान
सभा की बैठक मेँ लीग के भाग न लेने तथा उसके द्वारा
चलाए जा रहे प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
के परिणाम
स्वरुप भारत
मेँ दंगे
विकराल रुप धारण करते
जा रहै थे।
- राजनीतिक गतिरोध
को दूर करने के लिए ब्रिटेन
के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली
ने 20 फरवरी,
1947 को घोषणा
की, कि ब्रिटिश सरकार
जून 1947 के पूर्व सत्ता
भारतीयोँ को सौंप देगी।
- ब्रिटिश संसद
मेँ यद्यपि
इस घोषणा
की काफी
आलोचना हुई परंतु अंततः
स्वीकृत हो गई।
- इसी घोषणा
के साथ सत्ता का सफलतापूर्वक हस्तांतरण करने के लिए लॉर्ड
माउंटबेटन को भारत भेजा
गया।
31. माउंटबेटन योजना ( जून 1947)
- मार्च 1947 मेँ लार्ड माउंटबेटन को भारत
का वायसराय
बनाकर भेजा
गया।
- लार्ड माउंटबेटन ने भारत
और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं
के साथ बातचीत करके
एक योजना
तैयार की जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता
है।
- माउंटबेटन द्वारा
इस योजना
की घोषणा
3 जून, 1947 को की गई, जिसमे हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुगम
बनाने तथा दोनों मुख्य
संप्रदायोँ का समायोजन करने
के लिए देश को दो भागोँ
- भारत और पाकिस्तान मेँ विभाजित करने
का परामर्श
दिया गया।
- इस योजना
के द्वारा
यह निर्णय
लिया गया कि 15 अगस्त,
1947 को भारत
और पाकिस्तान को सत्ता
का हस्तांतरण डोमिनियन स्टेटस
के आधार
पर कर दिया जाएगा।
- कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलो ने इस योजना
को अपनी
स्वीकृति दे दी। इसके
उपरांत ब्रिटिश
संसद मेँ किस योजना
को कार्य
रुप देने
के लिए एक विधेयक
पारित किया
गया।
- माउंटबेटन की योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद
मेँ एक विधेयक 4 जुलाई,
1947 को प्रस्तुत किया गया।
यह विधेयक
18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रुप मेँ पारित हुआ।
इसकी प्रमुख
बातेँ निम्नलिखित थी-
1. 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र अधिराज्यों भारत
तथा पाकिस्तान की स्थापना
की जाएगी।
2. नए संविधान
के बनने
और लागू
होने तक वर्तमान संविधान
सभायें ही विधानसभाओं के रुप मेँ
1935 के एक्ट
के तहत ही कार्य
करेंगी।
3. ब्रिटिश क्राउन
का भारतीय
रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त
हो जाएगा।
4. भारत सचिव
का पद समाप्त कर उसके स्थान
पर एक राष्ट्रमंडलीय मामलोँ
के सचिव
की नियुक्ति करने की व्यवस्था की गई।
5. दोनों राज्योँ
के लिए राज्य मंत्रिमंडल के सुझाव
पर पृथक
गवर्नर जनरल
की नियुक्ति की जाएगी।
- इस अधिनियम
द्वारा 15 अगस्त
1947 को भारत
को दो स्वतंत्रता डोमिनियनों - भारत तथा पाकिस्तान मेँ बांट दिया
गया। पाकिस्तान के प्रथम
गवर्नर जनरल
मोहम्मद अली जिन्ना बने तथा भारत
के लिए माउंटबेटन को ही गवर्नर
जनरल बने रहने को कहा गया।