दांडी मार्च – 12 मार्च –
6 अप्रेल , 1930
आंदोलन का प्रसार
- पश्चिमोत्तर प्रांत
में खुदाई
खिदमतगार द्वारा
सक्रिय आंदोलन।
- शोलापुर में कपड़ा मजदूरों
की सक्रियता।
- धारासाणा में नमक सत्याग्रह।
- बिहार में चौकीदारी कर-ना अदा करने का अभियान।
- बंगाल में चौकीदारी कर एवं यूनियन
बोर्ड कर के विरुद्ध
अभियान।
- गुजरात में कर-ना अदायगी अभियान।
- कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं मध्य
प्रांत में वन कानूनों
का उल्लंघन।
- असम में ‘कनिंघम सरकुलर'
के विरुद्ध
प्रदर्शन।
- उत्तर प्रदेश
में कर-ना अदायगी
अभियान।
- महिलाओं, छात्रों,
मुसलमानों के कुछ वर्ग,
व्यापारी-एवं छोटे व्यवसायियों दलितों, मजदूरों
एवं किसानों
की आंदोलन
में सक्रिय
भागेदारी।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930 – जनवरी 1931
कांग्रेस ने भाग नहीं
लिया।
गांधी – इरविन समझौता – मार्च 1931
कांग्रेस, सविनय
अवज्ञा आदोलन
वापस लेने
तथा द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन
में भाग लेने हेतु
सहमत।
कांग्रेस का कराची अधिवेशन – मार्च 1931
गांधीजी और इरविन के मध्य हुये
दिल्ली समझौते
का अनुमोदन,
अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर अधिवेशन में गतिरोध पैदा
हो गया।
द्वीतीय गोलमेज सम्मेलन – दिसम्बर 1931
- ब्रिटेन के दक्षिणपंथी गुट द्वारा भारत
को किसी
तरह की रियासतें दिये
जाने का विरोध।
- अल्पसंख्यकों को संरक्षण दिये
जाने के प्रावधानों पर सम्मेलन में गतिरोधान दिसम्बर
1931 से अप्रैल
1934 तक सविनय
अवज्ञा आदोलन
का द्वितीय
चरण।
साम्प्रदायिक निर्णय
- दलित वर्ग
के लोगों
को प्रथक
प्रतिनिधित्व।
- राष्ट्रवादियों ने महसूस किया
कि यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के लिये गंभीर
खतरा है।
- गांधीजी का आमरण अनशन
(सितम्बर 1932) तथा पूना समझौता
।
भारत सरकार अधिनियम , 1935
- प्रस्तावित- एक अखिल भारतीय
संघ, केंद्र
में द्विसदनीय व्यवस्थापिका, प्रांतीय स्वायत्तता, विधान
हेतु 3 सूचियाँ-
केन्द्रीय, प्रांतीय एवं, समवर्ती।
- केंद्र में प्रशासन हेतु
विषयों का सुरक्षित एवं हस्तांतरित वर्ग
में विभाजन।
- प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों
का प्रत्यक्ष निर्वाचन।
- 1937 के प्रारंभ
में प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं हेतु
चुनाव संपन्न।
कांग्रेस द्वारा
बंबई, मद्रास,
संयुक्त प्रांत,
मध्यभारत, बिहार,
उड़ीसा एवं पश्चिमोत्तर प्रांत
में मंत्रिमंडलों का गठन।
- अक्टूबर-1939 द्वितीय
विश्व युद्ध
से उत्पन्न
परिस्थितियों के कारण कांग्रेस मत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दिये।