Skip to main content

geography भूगोल , भारत की भूगर्भिक संरचना


भारत की भूगर्भिक संरचना
- भारत मेँ चट्टानोँ के कई उप समूह पाए जाते हैं और कुछ उप समूहोँ को मिलाकर समूह का निर्माण होता है। सामान्यतः भारतीय चट्टानोँ का वर्गीकरण इस प्रकार से है आर्कियन क्रम की चट्टानेँ, धारवाड़ क्रम की चट्टानेँ, कुडप्पा क्रम की चट्टानेँ, विन्ध्य क्रम की चट्टानेँ, गोंडवाना क्रम की चट्टानेँ, दक्कन ट्रेप टर्शियरी क्रम की चट्टानें।

- आर्कियन क्रम की चट्टानोँ का निर्माण पृथ्वी के सबसे पहले ठंडे होने पर हुआ। ये रवेदार चट्टानें हैं, जिनमें जीवन का अभाव है। यह नीस, ग्रेनाइट, और शिष्ट प्रकार की हैं। इनका विस्तार कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छोटा नागपुर का पठार तथा राजस्थान के दक्षिण पूर्वी भाग पर है।

- धारवाड क्रम की चट्टानोँ के निर्माण के निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानोँ से प्राप्त हुए हैं। यहां रुपांतरित तथा स्तरभ्रष्ट चट्टान है। इनमें जीवाशेष नहीँ पाए जाते हैं। यह प्रायद्वीप एवं वाह्य प्रायद्वीप दोनों मेँ पाई जाती हैं।

- धारवाड क्रम की चट्टानेँ दक्षिण दक्कन प्रदेश मेँ उत्तरी कर्नाटक से कावेरी घाटी तक (शिमोगा जिले मेँ) पश्चिमी हिमालय की निचली घाटी मेँ मिलती है।

- मध्यवर्ती एवं पूर्वी दक्कन प्रदेश मेँ नागपुर जबलपुर मेँ सासर श्रेणी, बालाघाट भटिंडा मेँ चिपली श्रेणी, रीवा, हजारीबाग, आदि में गोंडाराइट श्रेणी तथा विशाखापत्तनम मेँ कूदोराइट श्रेणी नाम से विस्तृत हैं।

- कुडप्पा क्रम की चट्टानोँ का नामकरण आंध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर हुआ, सामान्यतः ये चट्टानें 2 भागों में विभक्त हैं 1. निचली कुडप्पा चट्टानें, 2. उपरी कुडप्पा चट्टानें।

- निचली कुडप्पा चट्टानें पापाधानी एवं चेधार श्रेणी प्रमुख चट्टानेँ है, उपरी कुडप्पा चट्टानें कृष्णा नल्लामलाई श्रेणी की प्रमुख चट्टानें हैं, ये चट्टानें लगभग 22,000 वर्ग किलोमीटर मेँ फैली हैं तथा आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु तथा हिमालय के कुछ क्षेत्रों मेँ स्थित हैं।

- विंध्यन क्रम की चट्टानोँ का नाम विंध्याचल के नाम पर पडा है। यह परतदार चट्टानेँ हैं तथा इनका निर्माण जल निक्षेपों से हुआ है। यह 5 प्रमुख क्षेत्रोँ मेँ पाई जाती हैं

1. सोन नदी की घाटी मेँ इन्हें सेमरी के नाम से पुकारते हैं।

2. आंध्र प्रदेश के दक्षिणी पश्चिमी भाग मेँ करनूल श्रेणी मेँ पाई जाती हैं।

3. भीमा नदी घाटी मेँ इन्हें भीमा श्रेणी कहते हैं।

4. राजस्थान मेँ जोधपुर तथा चित्तौरगढ़ में यह पलनी श्रेणी के रुप मेँ विस्तृत हैं।

5. उपरी गोदावरी घाटी तथा नर्मदा घाटी के उत्तर मेँ मालवा बुंदेलखंड प्रदेश मेँ इन चट्टानोँ का क्षेत्र विस्तृत है।

- गोंडवाना क्रम की चट्टानेँ दामोदर नदी घाटी मेँ राजमहल पहाड़ियोँ तक विस्तृत हैं, महानदी की घाटी मेँ महानदी श्रेणी, गोदावरी की सहायक नदियां जैसे वेनगंगा वर्धा की घाटियोँ मेँ, प्रायद्वीप भारत के अन्य क्षेत्रोँ मेँ यह कच्छ, काठियावाड़, पश्चिम राजस्थान, मद्रास, गुंटूर, कटक, राजमहेंद्री, विजयवाड़ा, तिरुचिरापल्ली और रामनाथपुरम मेँ मिलती हैं।

- दक्कन ट्रेप का निर्माण काल अपर क्रिटेशियस से इयोसीन काल तक माना जाता है, प्रायद्वीपीय भारत मेँ ज्वालामुखी विस्फोट के फलस्वरुप दरार उद्गार के रुप मेँ लावा निकला जिसने दक्कन ट्रेप के मुख्य पठार की आकृति को जन्म दिया। दक्कन ट्रेप मुख्यतः बेसाल्ट डोलोराइट प्रकृति की है। चट्टानें काफी कठोर हैं इनके कटाव के कारण चट्टान चूर्ण बना है, जिससे काली मिट्टी का निर्माण हुआ है यही मिट्टी कपास मिट्टी या रेगुर मिट्टी भी कहलाती है। दक्कन ट्रेप महाराष्ट्र गुजरात मध्यप्रदेश मेँ फैला है तथा कुछ क्षेत्र झारखंड एवं तमिलनाडु मेँ अवस्थित है।

- टर्शियरी क्रम की चट्टानोँ का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग की अवधि मेँ हुआ है। भारत के लिए इसका अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसी काल मेँ भारत ने वर्तमान रुप धारण किया था।

- टर्शियरी चट्टानेँ वाह्य प्रायद्वीपीय भू-भाग मेँ प्रमुख रुप से पाई जाती हैं। पाकिस्तान मेँ यह बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर सुलेमान किर्थर श्रेणी, हिमालय पर्वत से होती हुई म्यांमार के अराकानयोमा पर्वत श्रेणी तक फैली हैं।

Popular posts from this blog

Purpose of computer , कंप्यूटर का उद्देश्य

              कंप्यूटर का उद्देश्य   Purpose of computer आज के युग में कंप्यूटर का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ गया है । जीवन के हर क्षेत्र में आज किसी न किसी रूप में कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है ।   इसी आधार पर कंप्यूटर के उद्देश्य निम्नलिखित है - 1. कंप्यूटर की सहायता से विभिन्न प्रकार के अकाउंट केश बुक , लेजर ,   बैलेंस शीट , सेल्स रजिस्टर , परचेज बुक तथा बैंक विवरण सहजता व शुद्धता एवं गति के साथ तैयार की जा सकती है । 2. विश्व व्यापार , आयात निर्यात की स्थित ,, भुगतान संतुलन आदि के क्षेत्र में भी कंप्यूटर बड़े उपयोगी साबित हो रहे है। 3. चिकित्सा विज्ञान में कंप्यूटर का प्रयोग औषधि निर्माण से लेकर उपचार तक की संपूर्ण प्रक्रिया में हो रहा है। 4.   इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कंप्यूटर की मदद से विभिन्न प्रकार की सरल तथा जटिल मशीनों , छोटे बड़े यंत्रों तथा उपकरणों की उपयोगी मितव्यई तथा सरल डिजाइन सरलता से उपलब्ध हो जाती है , । 5. कंप्यूटर का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य ,   समाचारों का एक लंबी द...

Western painting पश्चिमी चित्रकला

पश्चिमी चित्रकला परिचय 27000-13000 ई . पू . में दक्षिण - पश्चिम यूरोप में गुफा कला के द्वारा तत्कालीन मानव ने अपने जीवन का चित्रण किया। अफ्रीकी कला , इस्लामिक कला , भारतीय कला , चीनी कला और जापानी कला - इन सभी का पूरा प्रभाव पश्चिमी चित्रकला पर पड़ा है। प्राचीन रोमन व ग्रीक चित्रकला प्राचीन ग्रीक संस्कृति विजुअल कला के क्षेत्र में अपने आसाधारण योगदान के लिए विख्यात है। प्राचीन ग्रीक चित्रकारी मुख्यतया अलंकृत पात्रों के रूप में मिली है। प्लिनी द एल्डर के अनुसार इन पात्रों की चित्रकारी इतनी यथार्थ थी कि पक्षी उन पर चित्रित अंगूरों को सही समझ कर खाने की कोशिश करते थे। रोमन चित्रकारी काफी हद तक ग्रीक चित्रकारी से प्रभावित थी। लेकिन रोमन चित्रकारी की कोई अपनी विशेषता नहीं है। रोमन भित्ति चित्र आज भी दक्षिणी इटली में देखे जा सकते हैं। मध्‍यकालीन शैली बाइजेंटाइन काल (330-1453 ई .) के दौरान बाइजेंटाइन कला ने रुढि़वादी ईसाई मूल्यों को व्यवहारिक या...

vyas river ब्यास नदी

ब्यास नदी लम्बाई -470 जलसम्भर क्षेत्र -20.303 ब्यास पंजाब (भारत) हिमाचल में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। नदी की लम्बाई 470 किलोमीटर है। पंजाब (भारत) की पांच प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार है। बृहद्देवता में शतुद्री या सतलुज और विपाशा का एक साथ उल्लेख है। इतिहास- ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है। हिमाचल में इसकी लंबाई 260 कि॰मी॰ है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। इस नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर रखा गया है। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है। स्थिति इस नदी का उद्गम मध्य ह...